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________________ २२६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन १. देव, मनुष्य आदि से सर्वत्र आदर प्राप्त करता है', २. कीर्ति का विस्तार करके सबका आश्रयदाता बन जाता है,२ ३. गुरु प्रसन्न होकर उसे समस्त ज्ञान दे देते हैं,3 ४. सन्देह-रहित होकर तथा तपादि करके दिव्यज्योति प्राप्त कर लेता है,४ ५ जिस प्रकार सुशील बैल गाड़ी में जोते जानेपर स्वयं को और मालिक को जंगल से निकालकर अच्छे स्थान पर ले जाता है उसी प्रकार विनीत शिष्य भी स्व और पर का कल्याण करता है ५ ६. मृत्यु के उपरान्त या तो मोक्ष प्राप्त करता है या शक्तिशाली (ऋद्धिधारी) देव बनता है। गुरु के कर्तव्य : ___ ग्रन्थ में गुरु के लिए आचार्य, बुद्ध, गुरु, पूज्य, धर्माचार्य, उपाध्याय, भन्ते, भदन्त आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे १. स देवगंधवमणुस्सपूइए चइत्तु देह मलपंकपुव्वयं । सिद्ध वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिडिढए ॥ . -3० १.४८. तथा देखिए-उ० १.७. २. नग्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए । हवई किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा । -उ० १.४५. ३. पुज्जा जस्स पसीयंति संबुद्धा पुव्वसंथया। पसन्ना लाभइस्संति विउसं अट्ठियं सुयं ॥ -उ० १.४६. ४. स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए महज्जुई पंचवयाई पालिया। -उ०१.४७. ५. वहणे वहमाणस्स ""संसारो अइवत्तई। .. -3० २७.२. ६: देखिए-पा० टि. १ और ४ ७. आचार्य-उ० ८.१३; १.४०-४१, ४३; १७.४; २७.११. बुद्ध-१.८, १७, २७,४०,४२,४६. गुरु-१.२-३,१६-२०; २६.८. पूज्य-१.४६. धर्माचार्य-३६.२६६. उपाध्याय-१४.४. भन्ते-भदन्त-९.५८,१२. ३०; २०.११; २३.२२; २६.६; २६ वा अध्ययन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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