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________________ १६८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ग्रन्थ में शब्दतः स्पष्टरूप से कथन न होने पर भी उनतीसवें अध्ययन में सम्यक्त्व के प्रसङ्ग में उन चिह्नों से युक्त गुणों का फल अवश्य बतलाया गया है । सम्यग्दर्शन के चिह्न-सम्यग्दर्शन के गुणरूप चिह्नों के नाम इस प्रकार हैं: १. संवेग (मोक्ष के प्रति झुकाव ), २. निर्वेद ( सांसारिक विषय-भोगों से विरक्ति ), ३. अनुकम्पा ( प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव ), ४. आस्तिक्य (जीव, अजीव, परलोक आदि की सत्ता में विश्वास) और ५. प्रशम (राग-द्वेषात्मक वृत्तियों के उपस्थित होने पर भी शान्त-परिणामों से विचलित न होना)। सम्यग्दर्शन के इन पाँच चिह्नों में से ग्रन्थ में 'संवेग', 'निर्वेद' और 'आस्तिक्य' ( अनुत्तर-धर्मश्रद्धा) को परस्पर एक-दूसरे का पूरक बतलाते हुए तृतीय-जन्म का अतिक्रमण किए बिना कर्मों का क्षय करके (आत्मविशुद्ध होकर) मोक्षप्राप्तिका अधिकारी बतलाया है। कहीं-कहीं ग्रन्थ में संवेग व निर्वेद की प्राप्ति को सम्यक्त्व की प्राप्ति के रूप में बतलाया गया है। 'अनुकम्पा' अहिंसा का ही प्रतिफल है तथा प्रशमभाव के बिना संवेगादि भाव नहीं हो सकते हैं क्योंकि जब चित्त रागादि वृत्तियों के उपस्थित होने पर अपने शान्त१. भा० सं० ज०, पृ० २४२; यशस्तिलकचम्पू, पृ० ३२३. २. संवेगेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हवमागच्छइ । अणंताणुबंधिकोहमाणमायालोभे खवेइ । नवं च कम्म न बंधइ । तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ। दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थे गइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झई । विसोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ। -उ० २६.१. तथा देखिए-उ० २६.२-३. ३. सोऊण तस्स सोधम्म अणगारस्स अंतिए । महया संवेगनिव्वेयं समावन्नो नराहिवो ।। -उ० १८.१८. तथा देखिए-उ० २१.१०; २६.६०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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