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प्रकरण : द्रव्य- विचार
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का निवास रहता है और एक के आहार आदि से सबका पोषण होता है ) तथा २. प्रत्येक • शरीर ( जिनके शरीर में एक ही जीव का निवास रहता है या जिस शरीर का एक ही स्वामी होता है ) । इसके बाद इन दोनों के अनेक भेदों में से कुछ अवान्तर प्रकारों को गिनाया गया है । जैसे : १
(क) साधारण - शरीर बादर पर्याप्तक के कुछ प्रकार - आलू, मूली, श्रृङ्गवेर (अदरक), हरिली, सिरिली, सिस्सिरिली, यावतिक, कन्दली, पलांडु, लशुन, कुहुव्रत, लोहिनी, हुताक्षी, हूत, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द, सूरणकन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुण्डी, हरिद्राकन्द आदि अनेक कन्दमूल इस विभाग में आते हैं । इनके नामों का परिज्ञान वैद्यक निघण्टु तथा देश-देशान्तर की भाषाओं से हो सकता है ।
(ख) प्रत्येक - शरीर बादर पर्याप्तक के कुछ प्रकार - वृक्ष, गुच्छ, गुल्म ( नवमल्लिका आदि), लता (चम्पकादि), वल्ली ( करेला आदि), तृण (घास ), वलय ( नारियल आदि । इसमें त्वचा वलयाकार होती है; शाखाएँ नहीं होती), पर्वज (जो पर्व या सन्धि वाले हैं। जैसे- बांस, ईख आदि), कुहुण ( कु : = पृथिवी का भेदन करके उत्पन्न होने वाले, छत्राकार), जलरुह ( कमल आदि), औषधितृण ( शाल्यादि धान्य), हरितकाय (चुलाई आदि की शाक) आदि अनेक पेड़-पौधे इस विभाग में आते हैं ।
४. अग्निकायिक जीव - अग्नि ही है शरीर जिनका उन्हें अग्निकायिक जीव कहते हैं । पृथिवी की तरह इसके भी चार भेद हैं ।
१. पत्तेयसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया ।
मुसु ढीय हलिद्दा य णेगहा एवमायओ ॥
-उ० ३६.६४-ε8.
२. दुविहा तेऊजीवा उ ( शेष पृ० ६५, पा० टि० १ की तरह) ।
उ० ३६.१०८.
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