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________________ धर्म वाला बताया है और पुद्गल को अधोगौरव (अधो गुरुत्व) धर्म वाला प्रतिपादित किया है। ___ जीव की स्वाभाविक गति ऊर्ध्व से ऊर्ध्वगमन करने की है। पुद्गल की स्वाभाविक गति नीचे से नीचे की ओर है। कारण यह है कि जीव (matter) के अमूर्तिक (स्पेश, रस, गन्ध, वर्ण, वजन से रहित) एवं स्थानान्तरित रूप गति क्रिया-शक्ति से युक्त होने के कारण उसकी गति ऊर्ध्वगमन होना स्वाभाविक है। उदाहरणार्थ ; हाइड्रोजन गैस लीजिए। हाइड्रोजन गैस से भरे हुए बैलून को मुक्त करने पर वह बैलून धीरे-धीरे ऊपर ही गमन करता रहता है। यदि वह बैलून किसी कारणवश फटा नहीं तो वह गति करते-करते उस ऊँचाई तक पहुँचेगा जहाँ तक वायुमण्डल की तह में हाइड्रोजन गैस है। साधारण हवा से 14 गुना हल्की हाइड्रोजन होती है। जब हाइड्रोजन हवा से 14 गुना हल्की होने के कारण वह बैलून ऊपर ही ऊपर उड़ता है, तो शुद्ध जीव का, जो पूर्णत: वजन (भार) शून्य है, ऊपर गमन करना स्वाभाविक है। पुद्गल में स्पर्श, रस, गन्ध वर्ण, भारादि के साथ-साथ स्थानांतरित गति शक्ति युक्त होने से पुद्गल का अधोगौरव स्वभाव होना भी स्वाभाविक है। यहाँ पर जिज्ञासा होना स्वाभाविक जीव की गति ऊर्ध्वगमन स्वरूप है तो यह संसारी जीव विभिन्न प्रकार की वक्रादि गति से विश्व के विभिन्न भाव में क्यों परिभ्रमण करता है? इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए अमृतचन्द्र सूरि बताते हैं कि अधस्तिर्यक् तयोर्ध्वं च जीवानां कर्मजा गतिः। ऊर्ध्वमेक स्वभावेन भवति क्षीण कर्मणाम्॥ जीव की संसार अवस्था में जो विभिन्न गति होती है, वह स्वाभाविक गति नहीं है। जीव की संसारावस्था में अधोगति, तिथंकगति, उर्ध्वगति का कारण कर्म जनित है। सम्पूर्ण कर्म से रहित जीव की केवल एक स्वाभाविक ऊर्ध्वगति ही होती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन के गति सम्बन्धी प्रथम सिद्धान्त के अनुसार "A body at rest will remain at rest and a body moving with uniform velocity in a straight line will continue to do so unless an external 644 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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