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________________ केवल ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय होने पर केवलज्ञान होता है केवल-ज्ञान होने पर किसी भी प्रकार अहंकार नहीं होता है। जो अत्यंत अज्ञानी है, जैसेएकेन्द्रिय आदि जीव; इनके विशिष्ट क्षयोपशम नहीं होने से तथा तीव्र ज्ञानावरणीय का उदय होने पर विशेष ज्ञान न होने के कारण इनके भी प्रज्ञा और अज्ञान परिषह विशेष नहीं होती है। लोकोक्ति भी है - "रिक्त चना बाजे घना" भर्तहरि ने कहा भी है अज्ञः सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः। ज्ञानलवदूर्विदग्धं ब्रह्मापि तं नरं न रंजयति ॥(13) नीतिशतक नासमझ को सहज में प्रसन्न किया जा सकता है। समझदार को उससे भी सहज में प्रसन्न किया जा सकता है परन्तु जो न समझदार है, न नासमझ है, ऐसे श्रेणी के मनुष्य को ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते। इसीलिये इंग्लिस में कहावत है - A half mind is always dangerous. जो अल्पज्ञ होते हैं वे भयंकर होते हैं। "The little mind is proud of own condition." संकीर्ण मन एवं कम बुद्धि वाले अधिक अहंकारी होते है। अल्पज्ञ लोग अहंकार से स्वयं को सर्वज्ञ मानकर सत्य को इंकार करते हैं। महान् नीतिज्ञ चाणक्य ने बताया है - मूर्खस्य पंच चिन्हानि गर्वी दुर्वचनी तथा। हठी चाप्रियवादी च परोक्तं नैव मन्यते॥ मूों के निम्नलिखित पांच चिन्ह है। (1) अहंकारी होना (2) अपशब्द बोलना (3) हठग्राही (4) अप्रिय बोलना (5) दूसरों के द्वारा कहा हुआ हित सत्य नहीं मानना। दर्शनमोहांतराययोरदर्शनालाभौ। (14) अदर्शन, Slack-belief by; दर्शनमोहनीय right-belief deluding, and failure 572 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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