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________________ 4. देव Celestial. नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु, और देवायु ये चार आयु हैं। नरकादि भवों (पर्यायों) के सम्बन्ध से आयु भी नारक योन कहलाती है। जैस - नारक भव के सम्बन्ध से आयु में नरक व्यपदेश होता है और नरक में होने वाली आयु नरक कहलाती है। इसी प्रकार तिर्यञ्च योनि में होने वाली तैर्यग्योन, मनुष्य में होने वाली मानुष और देवों में होने वाली देव आयु कहलाती है। जिसके सद्भाव में जीवन और अभाव में मरण हो, वह आयु है। जिसके होने पर आत्मा का जीवन और जिसके अभाव में आत्मा का मरण कहलाता है वह भव-धारण में कारण आयु है अर्थात् जो नरकादि भवों में रोककर रखे, उसे आयु कहते हैं। (1) नरक आयु - जिसके निमित्त से तीव्र शीत - ऊष्ण - वेदनाकारक नरकों में भी दीर्घ कालतक प्राणी जीवित रहता है, वह नरक आयु है। (2) तैर्यग्योनी - जिसका उदय होने पर क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, आदि अनेक दुःखों के स्थानभूत तिर्यंच पर्याय में वह प्राणी जीवित रहता हैं, वा दुःखकारक तिर्यञ्च पर्याय को धारण करता है, उसे तैर्यग्योन की आयु जानना चाहिये । (3) मनुष्यायु - जिसके उदय से शारीरिक, मानसिक अत्यधिक सुख-दुःख से समाकुल मानुष पर्याय में जन्म होता है, वा जिसके उदय से प्राणी मानुष भव धारण करता है वह मनुष्यायु कहलाती है । (4) देवायु - शारीरिक, मानसिक सुखस्वरूप देवपर्यायों में जन्म जिसके उदय से होता है वह देवायु है। जिस आयु कर्म के उदय से प्रायः कर शारीरिक, मानसिक सुखों से युक्त देवपर्याय में जन्म होता है, उसे देव आयु जानना चाहिये। कभी-कभी देवों में प्रिय देवांगना आदि के वियोग से, दूसरे महर्द्धिक देवों की महाविभूति के देखने से, देवपर्याय की समाप्ति के सूचक आज्ञाहानि, माला के मुरझाने और आभूषण एवं शरीर की कान्ति आदि की हीनता देखने से मानसिक दुःख उत्पन्न होता है अतः उस मानसिक दुःख का ज्ञापन कराने के लिए प्रायः शब्द ग्रहण किया है। 492 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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