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है, वह प्रवचन अर्थात् पदार्थ। इन निरूक्तियों से “प्रवचन" शब्द से आप्त, आगम और पदार्थ तीनों कहे जाते हैं तथा वह मिथ्यादृष्टि असद्भाव अर्थात मिथ्यारूप प्रवचन यानी आप्त, आगम पदार्थ का ‘उपदिष्ट' अर्थात् आप्ताभासों के द्वारा कथित अथवा अकथित का भी श्रद्धान करता है। (B) चारित्र मोहनीय
चारित्र पडिणिबद्ध कसायं जिणवरेहिं परिकहिदं। तस्सोदयेण जीवो अचरित्तो होदि णादव्यो।(170)
.. (समयसार) It is declared by Jina that Kashaya (Soul-Soiling gross .' emotions) is adverse to right conduct; when this begins to operate, the self becomes acharitra (devoid of right conduct); so let it be known.
चारित्र गुण को रोकने वाला कषाय भाव जिसके उदय से यह जीव चारित्र रहित अर्थात् अचारित्री हो रहा है ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने बतलाया है।
5. आयु कर्म एत्यनेन गच्छति नारकादि भवमित्यायुः। (राज., 8, अ.पृ. 456)
____ जिस कर्म के उदय से जीव नारकादि पर्यायों को प्राप्त होता है, नरकादि भवों में वास करता है, उसे आयु कर्म कहते हैं। इसका स्वभाव लोहे की सांकल वा काठ के यन्त्र के समान है। जैसे- सांकल अथवा काठ का यन्त्र पुरुष को अपने स्थान में ही स्थित रखता है। दूसरी जगह नहीं जाने देता, ठीक उसी प्रकार आयु कर्म जीव को मनुष्यादि पर्याय में स्थित (मौजूद) रखता है, दूसरी जगह नहीं जाने देता। 6. नाम कर्म
गदिआदि जीव भेदं पोग्गलाण भेदं च। गदियंतरपरिणमनं करेदि णामं अणेयविहं॥(12)
(गो. कर्म.) नाम कर्म गति आदि अनेक तरह का है। वह नारकी वगैरह जीव की
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