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________________ अनङ्गक्रीडा और कामतीव्राभिनिवेश ये स्वदारसन्तोष अणुव्रत के पाँच अतिचार हैं। ___ 1. परिविवाहकरण- साता वेदनीय कर्म और चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से कन्या के वरण को विवाह कहते हैं। दूसरे विवाह को परविवाह कहते हैं और पर के विवाह कराने को परविवाहकरण कहते हैं। 2. अपरिगृहीताइत्वरिका-अयनशील को इत्वरी कहते हैं। ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से प्राप्त गान, नृत्यादि कला और चारित्रमोह नामक स्त्री वेद के उदय से विशिष्ट अङ्गोपाङ्ग के लाभ से जो परपुरुषों को प्राप्त होती है, परपुरुषों को सेवन करती है; उनको अपने अधीन करती है, वह इत्वरी (व्याभिचारिणी स्त्री) कहलाती है और कुत्सित अर्थ में 'क' प्रत्यय करने से 'इत्वरिका' शब्द की निष्पत्ति होती है। अपरिगृहीता और परिगृहीता के भेद से इत्वरिका दो प्रकार की है। जो वेश्या रूप से वा पुंश्चली रूप से परपुरुषों को सेवन करती है, जिसका कोई स्वामी नहीं है वह अपरिगृहीता इत्वरिता है। 3. परिगृहीता इत्वरिका- जो एक पुरुष के द्वारा परिणीत है अर्थात् जिसका एक स्वामी विद्यमान है, वह फिर भी परपुरुषरमणशील है, वह परिगृहीता इत्वरिका है। इस प्रकार अपरिगृहीत और परिगृहीत इत्वरिकाओं से सम्बन्ध रखना, उनके यहाँ आना-जाना अपरिगृहीता इत्वरिकागमन अतिचार है। 4. अनङ्गक्रीडा-अनंगों से क्रीडा अनङ्गक्रीडा है। पुरुष का लिंग (प्रजनन) और स्त्री की योनि काम सेवन के अङ्ग हैं। उन अङ्गों को छोड़कर अन्यत्र अङ्गों में क्रीडा करना अनङ्गक्रीडा है। अर्थात् कामसेवन के योनि आदि अङ्गों के सिवाय अन्य अंगों में अनेकविध लिंग और योनि के विकार से कामातिरेकवश क्रीड़ा करना अनङ्गक्रीडा है। 5. कामतीव्राभिनिवेश- काम का प्रवृद्ध परिणाम कामतीव्राभिनिवेश है। काम की तीव्र प्रवृत्ति, सतत कामवासना से पीड़ित रहकर विषयसेवन में लगे रहना कामतीव्राभिनिवेश है। ये पाँच स्वदार-संतोषव्रत (ब्रह्मचर्याणुव्रत) के अतिचार हैं। प्रश्न- दीक्षिता, अतिबाला, तिर्यांचिनी आदि का सेवन करना अतिचार है; 450 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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