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________________ प्रतिरूपकव्यवहारा: । ( 27 ) The Partial Transgressions of the third vow अचौर्याणुव्रत 1. स्तेनप्रयोग Abetment of theft. 2. तदाहृतादान 3. विरुद्धराज्यातिक्रम 4. हीनाधिकमानोन्मान 5. प्रतिरूपक व्यवहार स्तेनप्रयोग, स्तेन आहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिक मानोन्मान और प्रतिरूपकव्यवहार ये अचौर्य अणुव्रत के पाँच अतिचार हैं। स्तेनप्रयोग- चोर को चौर्य कर्म में स्वयं प्रयुक्त करना स्तेन प्रयोग है। अर्थात् - चोरी करने वाले को स्वयं प्रयोग ( उपाय ) बतलाना व दूसरे के द्वारा उसको चोरी में प्रयुक्त - प्रवृत्त कराना और उस चोरी की वा चोर की मन से प्रशंसा करना, चोरी करना अच्छा मानना, ये सब स्तेनप्रयोग हैं, ऐसा जानना चाहिए । are : - Receiving stolen property. - Illegal traffic e.g. by selling things at inordinate prices in time of war or to alien enemies, etc. - False weights and measures. Adulteration. तदाहृतादान - चोर के द्वारा लाये गये द्रव्य को ग्रहण करना तदाहृतादान है। अपने द्वारा जिसके उपाय नहीं बताये गए हैं और न जिसकी अनुमोदना ही की है ऐसे चोर के, चोरी करके लाए हुए द्रव्य को खरीदना तदाहृतादान है; ऐसा जानना चाहिए । प्रश्न- तदाहृतादान में क्या दोष है ? उत्तर - चोरी का माल खरीदने ( तदाहृतादान) से, पर- पीड़ा, राजभय आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। इसके विरूद्ध राज्यातिक्रम आदि भी जानना चाहिए। अर्थात् राज्य के विरूद्ध कार्य करने से भी पर - पीड़ा, राजभय आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। 448 विरूद्धराज्यातिक्रम - उचित न्याय से अधिक भाग को ग्रहण करना अतिक्रम है। उचित न्यायभाग से अधिक भाग दूसरे उपायों से ग्रहण करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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