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________________ अध्याय 8. पृ.सं. 466 471 474 476 482 483 484 486 487 .491 493 505 1. बन्धतत्त्व का वर्णन (बन्ध के कारण) 2. बन्ध का लक्षण 3. बन्ध के भेद 4. प्रकृति बंध का वर्णन-प्रकृति बन्ध के मूल भेद 5. प्रकृति बंध के उत्तर भेद 6. ज्ञानावरण के पाँच भेद 7. दर्शनावरण कर्म के 9 भेद 8. वेदनीय के दो भेद । 9. मोहनीय के 28 भेद 10. आयुकर्म के भेद 11. नामकर्म के भेद 12. गोत्रकर्म के भेद 13. अन्तराय कर्म के भेद 14. स्थिति बन्ध का वर्णन 15. मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति 16. नाम और गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति 17. आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति 18. वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति . 19. नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति 20. शेष पाँच कर्मों की जघन्य स्थिति 21. अनुभव बन्ध का लक्षण 22. फल दे चुकने के बाद क्या होता है? 23. प्रदेशबंध का स्वरूप A. अनादि द्रव्य का प्रमाण B. समय प्रबद्ध का प्रमाण C. वेदनीय कर्म का अधिक भाग होने का कारण 506 506 - 507 508 508 508 509 509 510 512 512 516 516 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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