________________
Juanimous submission to the fruition of karma. (4) बालतप Austerities not based upo' : ight knowledge सराग संयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा और बाल तप ये देवायु के आस्रव हैं। सरागसंयमादि शुभ परिणाम देवायु के आम्रव के कारण हैं। विस्तार से तो कल्याणकारी धार्मिक मित्रों की संगति, आयतनसेवा, सद्धर्म श्रवण, स्वअगौरवदर्शन, निर्दोष प्रोषधोपवास, तप की भावना, बहुश्रुतत्व, आगमपरता, कषायों का निग्रह, पात्रदान, पीत पद्मलेश्या के परिणाम और मरण समय में धर्मध्यान रूप परिणाम आदि शुभ परिणाम सौधर्मादि कल्पवासी देव-आयु के आस्रव के कारण हैं। अव्यक्त सामायिक और सम्यग्दर्शन की विराधना आदि भवनवासी आदि देवों की आयु के और महर्धिक मनुष्यों की आयु के आम्रव के कारण हैं। पाँच अणुव्रतधारी, सम्यग्दृष्टि मनुष्य और तिर्यञ्च, सौधर्म स्वर्ग से लेकर अच्युत नामक सोलहवें स्वर्ग पर्यन्त उत्पन्न होते हैं। यदि पंचाणुव्रत धारक मानव और तिर्यञ्च सम्यग्दर्शन की विराधना कर देते हैं तो वे भवनवासी आदि देवों में उत्पन्न होते हैं। नहीं जाना है जीव-अजीव के स्वरूप को जिन्होंने ऐसे तत्त्वज्ञानशून्य बालतप तपने वाले, अज्ञानी, तत्त्व-कुतत्त्व को नहीं जानने वाले, अज्ञान पूर्वक संयम का पालन करने वाले, क्लेश के अभाव विशेष यानी (मन्द कषाय) के कारण कोई भवनवासी व्यन्तरादि में उत्पन्न होते हैं कोई सौधर्म स्वर्ग से लेकर सहस्रार स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं और कोई इन भावों से मरकर मानव एवं तिर्यञ्च पर्याय में भी उत्पन्न हो सकते हैं। अकामनिर्जरा, भूख-प्यास का सहना, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, पृथ्वी पर शयन, मलधारण (स्नान नहीं करना) परितापादि परीषहों से खेद-खिन्न नहीं होना, गूढ पुरुषों के बन्धन में पड़ जाने पर भी नहीं घबड़ाना, दीर्घकाल तक रोगी रहने पर भी संक्लेश भाव नहीं करना, वृक्ष या पर्वत के शिखर से झम्पापात करना, अनशन, अग्निप्रवेश, विषभक्षण आदि में धर्म मानने वाले कुतापस मरकर व्यन्तरदेव, मनुष्य और तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं। जिन्होंने शील व्रतों को धारण नहीं किया है किन्तु जिनका हृदय अनुकम्पा से ओतप्रोत है, जिनके जलरेखा सदृश रोष है तथा जो भोगभूमि में उत्पन्न हैं, ऐसे तिर्यञ्च और मनुष्य
387
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org