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दुःखं शोको वधस्तापः क्रन्दनं परिदेवनम् । परात्मद्वितयस्थानि तथा च
परपैशुनम् ॥201
तथा ।
छेदन भेदनं चैव ताडनं दमनं तर्जनं भर्त्सनं चैव सद्यो विशंसनं तथा ॥2॥ पापकर्मोपजीवित्वं वक्रशीलत्वमेव च । शस्त्रप्रदानं विश्रम्भघातनं विषमिश्रणम् ।।22।।
श्रृङ्खलावागुरापाशरज्जुजालादिसर्जनम् ।
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धर्मविध्वंसनं धर्म प्रत्यूहकरणं
शीलव्रतप्रच्यावनं
तपस्विगर्हणं इत्यसद्वेदनीयस्य
तथा ||23||
तथा । भवन्त्यास्त्रवहेतवः ||24||
पराये, अपने तथा दोनों में स्थित दुःख, शोक, वध, ताप, क्रन्दन और परिदेवन तथा दूसरे की चुगली, छेदना, भेदना ताड़ना, दमन करना, डाँटना, झिड़कना, शीघ्रता से (अपराध का विचार किये बिना ही) घात करना, पापकार्यों से जीविका करना, कुटिल स्वभाव रखना, शस्त्र देना, विश्वासघात करना, विष मिलाना, सांकल, जाल, पाश, रस्सी तथा जाल आदि का बनाना, धर्म का विध्वंस करना, धर्म के कार्यों में विघ्न करना, तपस्विजनों की निन्दा करना और शीलव्रत से च्युत करना ये सब असाता वेदनीय के आस्त्रव के हेतु हैं । साता वेदनीय का आम्रव भूतव्रत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वेद्यस्य । (12)
( तत्त्वार्थसार )
1. भूतानुकम्पा Compassion for all living beings,
2. व्रत्यानुकम्पा Compassion for the vowers.
3. दान Charity.
4. सरागसंयम Selfcontrol with slight attachment etc. i.e.
5. संयमासंयम Restrain by vows of some but not of other passions. 6. अकामनिर्जरा Equanimous submission to the fruition of karma.
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