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________________ और हिंसादि कार्य ज्ञानावरण कर्म के आस्रव के कारण हैं। दर्शनमात्सर्य, दर्शनान्तराय, आँखें फोड़ना, इन्द्रियों के विपरीत प्रवृति, अपनी दृष्टि का गर्व, बहुत देर तक सोये रहना, दिन में सोना, आलस्य, नास्तिक्य, सम्यग्दष्टियों में दूषण लगाना, कुतीर्थ प्रशंसा, जीवहिंसा और मुनिगणों के प्रति ग्लानि के भाव आदि भी दर्शनावरणकर्म के आस्रव के कारण हैं। महाभारत में कहा भी हैं: ये पुरा मनुजा देवि ज्ञानदर्पसमन्विताः। श्लाघमानाश्च तत् प्राप्य ज्ञानाहङ्कारमोहिताः॥ वदन्ति ये परान् नित्यं ज्ञानाधिक्येनदर्पिताः। ज्ञानादसूयां कुर्वन्ति न सहन्ते हि चापरान् ॥ तादृशा मरणं प्राप्ताः पुनर्जन्मनि शोभने। मानुष्यं सुचिरात् प्राप्य तत्र बोधविवर्जिताः॥ भवन्ति सततं देवि यतत्रो हीनमेधसः॥ जो मनुष्य ज्ञान के घमंड में आकर अपनी झूठी प्रशंसा करते हैं और ज्ञान पाकर अहंकार से मोहित हो दूसरों पर आक्षेप करते हैं, जिन्हें सदा अपने अधिक ज्ञान का गर्व रहता है, जो ज्ञान से दूसरों के दोष प्रकट किया करते हैं, और दूसरे ज्ञानियों को नहीं सहन कर पाते हैं, शोभने! ऐसे मनुष्य मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म लेने पर चिरकाल के बाद मनुष्य योनि पाते हैं। देवि! उस जन्म में वे सदा यत्न करने पर भी बोधहीन और बुद्धि रहित होते हैं। असाता वेदनीय के आस्रव दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसद्वेद्यस्य। (11) The inflow of pain bringing feeling 3tHidde-ih Karmic matter is due to the following: 1. दुःख pain 2. शोक Sorrow 3. ताप repentence, remorse. 4. आक्रन्दन weeping 5. वध depriving of vitality 6. परिवेदना piteous or pathetic moaning to attract compassion. 372 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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