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________________ ज्ञानावरण और दर्शनावरण के आसव तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः। (10) 1. प्रदोष Depreciation of the learned scriptures. 2. निन्हव Concealment of knowledge. 3. मात्सर्य Envy, Jealousy. Refusal to impart knowledge out of envy. 4. अन्तराय Obstruction. Hindering the progress of knowledge. 5. 3TTAIGHT Denying the truth proclaimed by another by body and speech. 6. उपघात Refuting the truth, although it is known to be such. '' ज्ञान और दर्शन के विषय में प्रदोष, निन्हव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादना और उपघात ये ज्ञानावरण और दर्शनावरण के आस्रव हैं। 1. प्रदोष:- किसी के ज्ञानकीर्तन (महिमा सुनने) के अनन्तर मुख से कुछ न कहकर अन्तरंग में पिशुनभाव होना, ताप होना प्रदोष है। मोक्ष की प्राप्ति के साधनभूत मति, श्रुत आदि पाँच ज्ञानों की वा ज्ञान के धारी की प्रशंसा करने पर वा उसकी प्रशंसा सुनने पर मुख से कुछ नहीं कह कर के मानसिक परिणामों में पैशून्य होता है वा अन्तकरण में उसके प्रति जो ईर्ष्या का भाव होता है, वह प्रदोष कहलाता है। निन्हव:- दूसरे के अभिसन्धान से ज्ञान का व्यपलाप करना निन्हव है। यत् किञ्चित् परनिमित्त को लेकर किसी बहाने से किसी बात को जानने पर भी मैं इस बात को नहीं जानता हूँ, पुस्तक आदि के होने पर भी 'मेरे पास पुस्तक आदि नहीं है' इस प्रकार ज्ञान को छिपाना ज्ञान का व्यपलपन करना, ज्ञान के विषय में वञ्चन करना निन्हव है। 3. मात्सर्य:- देय ज्ञान को भी योग्य पात्र के लिए नहीं देना मात्सर्य है। किसी कारण से आत्मा के द्वारा भावित, देने योग्य ज्ञान को भी योग्य पात्र के लिए नहीं देना मात्सर्य है। 4. अन्तराय:- ज्ञान का व्यवच्छेद करना अन्तराय है। कलुषता के कारण ज्ञान का व्यवछेद करना, कलुषित भावों के वशीभूत होकर ज्ञान के साथ पुस्तक 370 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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