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सूत्र में 'च' शब्द क्रोधादि कषायों के विशेषों का संग्रह करने के लिए है। अर्थात् 'च' शब्द से कषायों के भेद और उपभेदों का भी ग्रहण हो जाता है। अतः अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय के सोलह भेदों से गुणा करने पर जीवाधिकरण आम्रव के चार सौ बत्तीस भेद भी होते हैं। प्रश्न- संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ आदि के आस्रवत्व कैसे हैं ? उत्तर- क्रोधादि से आविष्ट पुरूष के द्वारा कृत संरम्भ आदि क्रियाएँ कषायों
से अनुरंजित होने से, नीले वस्त्र के समान अधिकरण भाव को प्राप्त होती हैं। जैसे नीले रंग में डाला गया वस्त्र नीले रंग से अनुरञ्जित होने से नीला हो जाता है, उसी प्रकार संरम्भ आदि क्रियाएँ अनन्तानुबन्धी आदि कषायों से अनुरंजित होती हैं, अतः इन संरम्भादि में भी जीवाधिकरणत्व सिद्ध होता है।
अजीवाधिकरण के भेद निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम्। (9) The other 37-itaifeacut i.e. dependence on the non-soul is of the following 11 kinds : 2 (kinds of) निर्वर्तना production 1 मूलगुण of the body, speech mind and respiration 2 उत्तरगुण of books, pictures, statues etc. 4 (kinds of) निक्षेप Putting down a thing (1) अप्रत्यवेक्षित without seeing (2) दुःप्रमृष्ट petulantly, peevishly (3) सहसा hurriedly and (4) अनाभोग where it ought not to be put. 2 (kinds of) संयोग mixing up 1 भक्तपान food and drink (2) उपकरण mixing up of things necessary for doing any act. 3 (kinds ol) निसर्ग movement by 1 काय Body (2) वाङ् speech and (3) मन mind. पर अर्थात् अजीवाधिकरण क्रम से दो, चार, दो और तीन भेद वाले निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग रूप हैं।
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