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गुणों को कोई न कोई आश्रय चाहिए, गुण आश्रय के बिना नहीं रह सकते और द्रव्य को छोड़कर अन्य आधार हो नहीं सकता।
जो नित्य द्रव्य के आश्रय से रहता है वह गुण है। यद्यपि पर्यायें भी द्रव्य में रहती हैं, परन्तु पर्यायें कादाचित्क हैं अत: 'द्रव्याश्रयाः' इस पद से पर्यायों का ग्रहण नहीं होता हैं। अत: 'द्रव्याश्रयाः' इस पद से अन्वयी धर्म गुण है ऐसा सिद्ध होता है, जैसे कि, जीव के अस्तित्वादि और ज्ञान, दर्शन ... आदि गुण हैं और पुद्गल के अचेतनत्व आदि रूप-रसादि गुण हैं।
जदि हवदि दव्वमण्णं गुणदो य गुणा य दव्वदो अण्णे। ... दव्वाणंतियमधवा दव्वाभावं पकुव्वंति ॥(44)
(पंचास्तिकाय पृ.152) प्रदेशों की अपेक्षा भी यदि द्रव्य से गुण अलग-अलग हों तो जो अनंतगुण द्रव्य में एक साथ रहते हैं वे अलग-अलग होकर अनंत द्रव्य हो जावेंगे और द्रव्य से जब सब गुण भिन्न हो गए तब द्रव्य का नाश हो जावेगा। यहाँ पूछते हैं कि गुण किसी के आश्रय या आधार से रहते या वे आश्रय बिना होते हैं? यदि वे आश्रय से रहते हैं ऐसा कोई माने और उसको और कोई दोष दे तो यह कहना होगा कि, जो अनंत ज्ञान आदि गुण जिस किसी एक शुद्ध आत्म द्रव्य में आश्रयरूप हैं उस आत्म-द्रव्य से यदि वे गुण भिन्न-भिन्न हो जावें, इसी तरह दूसरे शुद्ध जीव द्रव्य में भी जो अनंत गुण हैं वे भी जुदे-2 हो जावें तब यह फल होगा कि शुद्धात्म द्रव्यों से अनंतगुणों के जुदा होने पर शुद्ध आत्मद्रव्य अनंत हो जायेंगे। जैसे ग्रहण करने योग्य परमात्म द्रव्य में गुण और गुणीका भेद होने पर द्रव्य की अनंतता कही गई वैसी ही त्यागने योग्य अशुद्ध जीव द्रव्य में तथा पुद्गलादि द्रव्यों में भी समझ लेनी चाहिये अर्थात् गुण और गुणीका भेद होते हुए मुख्य या गौणरूप एक-एक गुण का मुख्य या गौण एक-2 द्रव्य आधार होते हुये द्रव्य अनंत हो जावेगा तथा द्रव्य के पास से जब गुण चले जायेंगे तब द्रव्य का अभाव हो जायेगा जबकि यह कहा है कि गुणों का समुदाय द्रव्य है। यदि ऐसे गुणसमुदाय रूप द्रव्य से गुणों का एकांत से सर्वथा ; भेद माना जायेगा तो गुण समुदाय स्वरूप का अस्तित्व द्रव्य कहाँ रहेगा? किसी भी तरह नहीं रह सकता है। .
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