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________________ की पर्यायरूप, सादिसांत समयरूप सूक्ष्मपर्याय व समयों के समुदाय की अपेक्षा निमिष, घडी आदि कोई भी माना हुआ भेदरूप काल का नाम सो व्यवहार काल है। जिस प्रकार वास्तव में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य के समस्त लक्षणों का सद्भाव होने से 'द्रव्य' संज्ञा को प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार काल भी ( द्रव्य के समस्त लक्षणों का सद्भाव होने से) 'द्रव्य' संज्ञा को प्राप्त करता है। इस प्रकार छह द्रव्य हैं । किन्तु जिस प्रकार जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश को द्वि-आदि प्रदेश जिसका लक्षण है ऐसा अस्तिकायपना है, उसी प्रकार कालाणुओं का यद्यपि उनकी संख्या लोकाकाश के प्रदेशों जितनी है तथापि एक प्रदेशीपने के कारण अस्तिकायपना नहीं है। इसी ही कारण यहाँ पंचास्तिकाय के प्रकरण में मुख्यतः काल का कथन नहीं किया गया है, ( परंतु ) जीव- पुद्गलों के परिणाम द्वारा ज्ञात होती है, ऐसी उसकी पर्यायें होने से तथा जीव पुद्गलों के परिणाम की अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा जिसका अनुमान होता है ऐसा वह (काल) द्रव्य होने से, उसे यहां अन्तर्भूत किया गया है। एदे कालागासा धम्मा-धम्मा पुग्गला जीवा । लब्धंति दव्वसणं कालस्स दु णत्थि कायत्तं ॥ ( 102 ) 344 That time has infinite Samayas. वह अनन्त समय वाला है। यद्यपि वर्तमान काल एक समयवाला है तो भी अतीत और अनागत अनन्त समय हैं ऐसा मानकर कालको अनन्त समयवाला कहा है। अथवा मुख्य कालका निश्चय करने के लिए यह सूत्र कहा है । तात्पर्य यह है कि अनन्त पर्यायें वर्तना गुणके निमित्त से होती हैं इसलिए एक कालाणुको भी उपचार से अनन्त कहा है । परन्तु समय अत्यन्त सूक्ष्म कालांश है और उसके समुदाय को आवलि मुहूर्त, घड़ी, घण्टा, दिन, रात जानना चाहिए । Jain Education International काल द्रव्य की विशेषता सोऽनन्तसमय: । (40) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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