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________________ गुण वाले परमाणु परिणामक होते हैं (अपने स्वरूप अर्थात् अपने रूप करने . वाले होते हैं) अत: पूर्व अवस्था के नाशपूर्वक एक तृतीय अवस्थान्तर की उत्पत्ति होती है तब एक स्कन्ध उत्पन्न होता है। अर्थात् दो गुण वाली और चार गुण वाली जो दो अवस्थाएँ थीं उनका व्यय होकर तीसरी छह गुण अवस्था वाला स्कन्ध उत्पन्न हो जाता है। अन्यथा श्वेत और कृष्ण धागे का संयोग होने पर अपरिणामकता होने से जैसे वे धागे जुदे-जुदे रहते हैं, वैसे परमाणु पृथक्-पृथक् रखे रहेंगे। परन्तु जहाँ परिणामकता है वहाँ परस्पर संश्लेष होने पर स्पर्श, रस, गंध, वर्णादि में परिवर्तन हो जाता है, अवस्थान्तर भाव हो जाता है। जैसे-शुक्ल और पीत रंग के मिलने पर हरा रंग उत्पन्न होता है। . . . द्रव्य का लक्षण गुणपर्ययवद् द्रव्यम्। (38) Substance is possessed of attributes and modifications. गण और पर्याय वाला द्रव्य है। द्रव्य, गुण और पर्यायों का एक अखण्ड पिण्ड स्वरूप है। गुण को सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय भी कहते हैं पर्याय को विशेष भेद भी कहते हैं। ऐसे सामान्य और विशेष से सहित द्रव्य होता है। पंचास्तिकाय में कहा भी पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्त य पज्जया णत्थि। दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूविंति॥(12) पर्यायों से रहित द्रव्य और द्रव्यरहित पर्यायें नहीं होती है। दोनों का अनन्यभाव श्रमण प्ररूपित करते हैं। जिस प्रकार दूध, दही, मक्खन, घी इत्यादि से रहित गोरस नहीं होता उसी प्रकार पर्यायों से रहित द्रव्य नहीं होता, जिस प्रकार गोरस से रहित दूध, दही, मक्खन, घी इत्यादि नहीं होते उसी प्रकार द्रव्य से रहित पर्यायें नहीं होती। इसलिये, यद्यपि द्रव्य और पर्यायों का आदेशवशात्-विवक्षा वश कथंचित् भेद है तथापि, वे एक अस्तित्व में नियत (दृढ़रूप से स्थित) होने के कारण अन्योन्यवृत्ति नहीं छोड़ती इसलिये वस्तुरूप से उनका अभेद है। 338 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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