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________________ में आदि शब्द प्रकार वाची है जिससे अनुदिशों का ग्रहण हो जाता है। सर्वार्थसिद्धि में जघन्य.आयु नहीं है यह बतलाने के लिए सर्वार्थसिद्धि' पद का अलग से ग्रहण किया है। इससे यह अर्थ प्राप्त हुआ कि, अधोग्रैवेयक में से प्रथम में तेइस सागर, दूसरे में चौबीस सागर और तीसरे में पच्चीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है। मध्यम ग्रैवेयक में से प्रथम में छब्बीस सागर, दूसरे में सत्ताईस सागर और तीसरे में अट्ठाईस सागर उत्कृष्ट स्थिति है। उपरिम ग्रैवेयक में से पहले में उनतीस सागर, दूसरे में तीस सागर, तीसरे में इकतीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है। अनुदिश विमानों में बत्तीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है और सर्वार्थसिद्धि में तैंतीस सागर ही स्थिति है। यहाँ उत्कृष्ट और जघन्य का भेद नहीं है। स्वर्गों में जघन्य आयु का वर्णन अपरा पल्योपमधिकम्। (33) (In the Saudharma and Isana the) minimum (age is) a little over one palya. सौधर्म और ऐशान कल्प में जघन्य स्थिति साधिक एक पल्य है। यहाँ पर ‘अपरा' शब्द से जघन्य स्थिति ली गई है। सौधर्म और ऐशान कल्पों .. के देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्य है। अग्रिम सूत्र के अनुसार जाना जाता है जो पूर्व-पूर्व देवों की उत्कृष्ट स्थिति है वह अगले-अगले देवों की जघन्य स्थिति है इससे जाना जाता है कि सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों की स्थिति साधिक एक पल्य है। उत्कृष्ट एवं जघन्य आयु के नियम ___ परत: परत : पूर्वापूर्वाऽनन्तराः।(34) . Further (and) further (on) the former (or maximum age becomes the minimum age for the next. आगे-आगे पूर्व-पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति अनन्तर-अनन्तर की जघन्य स्थिति 'अधिक' पद की यहाँ अनुवृत्ति होती है। इसलिए इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिए कि सौधर्म और ऐशान कल्प में जो साधिक दो सागर उत्कृष्ट स्थिति 261 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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