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________________ है कि ऊपर-ऊपर प्रत्येक कल्प में और प्रत्येक प्रस्तार में वैमानिक देव स्थिति आदि की अपेक्षा अधिक-अधिक हैं। वैमानिक देवों में उत्तरोत्तरहीनता गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः। (21) Moving from place to place, height of body attachment to world by objects, pride these (go on) decreasing (as we go up to the higher heavenes.) गति, शरीर, परिग्रह, और अभिमान की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के देव हीन नीचे-नीचे के देव से ऊपर-ऊपर के देवों के पुण्य अधिक होने से नीचे के देवों से ऊपर के देव कुछ विशेषता को लिये होते हैं। 20 नम्बर सूत्र में कुछ विशेषता का वर्णन किया गया है कुछ विशेषता का वर्णन यहाँ किया गया है। ये विशेषताएँ इस प्रकार है- एक देश से दूसरे देश के प्राप्त करने का जो साधन है उसे गति कहते हैं। यहाँ शरीर से वैक्रियिक शरीर लिया है यह पहले कह आये हैं। लोभ कषाय के उदय से विषयों के संग को परिग्रह कहते हैं। मान कषाय के उदय से उत्पन्न हुए अहंकार को अभिमान कहते हैं। इन गति आदि की अपेक्षा वैमानिक देव ऊपर-ऊपर हीन हैं। भिन्न देश में स्थित विषयों में क्रीड़ा विषयक रति का प्रकर्ष नहीं पाया जाता इसलिए ऊपर-ऊपर गमन कम है। सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों का शरीर सात अरनि प्रमाण है। सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देवों का शरीर छह अरनि प्रमाण है। ब्रह्म, बह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ट कल्प के देवों का शरीर पाँच अरत्निप्रमाण है। शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार कल्प के देवों का शरीर चार अरत्निप्रमाण है। आनत और प्राणत कल्प के देवों का शरीर साढ़े तीन अरनिप्रमाण है। आरण और अच्युत कल्प के देवों का शरीर तीन अरत्निप्रमाण है। अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्रों का शरीर ढ़ाई अरनिप्रमाण है। मध्यग्रैवेयक में अहमिन्द्रों का शरीर दो अरत्नि प्रमाण है। उपरिम ग्रैवेयक में और अनुदिशों में अहमिन्द्रों का शरीर डेढ़ अरनिप्रमाण 253 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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