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हैं, वे अधिगत चारित्रार्य हैं। तथा अन्तरंग में चारित्र मोह के क्षयोपशम का सद्भावं होने पर बाह्योपदेश का निमित्त पाकर विरति भाव को प्राप्त हुए हैं, वे अनधिगत चारित्रार्य हैं। (रा.वा.पृ.556)
कुछ वैदेशिक ऐतिहासिक विद्वान् मानते हैं कि पहले आर्य लोग कास्पियन सागर के निकटस्थ क्षेत्र में वास करते थे। पशुचारण के लिए क्षेत्र के अभाव से वे लोग विभिन्न दलों में विभाजित होकर विभिन्न देश में जाकर स्थायी रूप से वास करने लगे। उसमें से कुछ आर्य पंजाब से होकर भारत में प्रवेश किये। उस समय में भारत में केवल अनार्य (म्लेच्छ) लोग वास करते थे। म्लेच्छ (अनार्य) लोग को कुछ ऐतिहासिक विज्ञ द्राविड़ भी कहते हैं। अनार्य लोग धर्म-सभ्यता, संस्कृति योग्य आचार विचार से रहित थे। वे लोग पशुपालन, कृषि, शिल्प, आक्षरिक शिक्षा-विद्या आदि से रहित थे। वे लोग वन्य पशुओं का शिकार करके कच्चा मांस खाते थे एवं पशुचर्म परिधान करते थे। जब आर्य लोग पहले-पहले भारतवर्ष में प्रवेश करने लगे तब अनार्य लोग उनके साथ युद्ध करके भारत से हटाने के लिए बहुत पुरुषार्थ किए। परन्तु आर्य लोग कला, कौशल, युद्ध, विद्या, अस्त्र-शस्त्र में निष्णात होने के कारण अनार्यों को परास्त करके यत्र-तत्र फैल गये। अनार्य लोग परास्त होकर विशेष करके उत्तर-भारत को छोड़कर दक्षिण भारत की ओर चले गये एवं जंगल में रहने लगे। वर्तमान भारत में संथाल, शवर, भील आदि लोग अनार्य हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि पूर्व आर्यों के वंशधर हैं।
___ यह ठीक है कि प्रागैतिहासिक काल (दुःषमा काल) में भारत वर्ष में म्लेच्छ लोग भी रहते थे। द्राविड लोग भारत के आदिम आदिवासी तथा अधिवासी भी हैं, परन्तु 'आर्य लोग कास्पियन सागर निकटस्थ क्षेत्रों से भारत वर्ष में आए' यह कहना सत्य-तथ्य के विपरीत है क्योंकि आप लोग इस ही पुस्तक में पहले पढ़े होगें कि भारतवर्ष में जिस समय भोग भूमि रहती है, उस समय भारतवर्ष में भोग भूमिज आर्य लोग रहते थे। आर्य लोग अत्यन्त सुन्दर, शक्तिशाली, बहत्तर कलाओं में निपुण, कल्पवृक्ष से प्राप्त शुद्ध अमृतोपम शाकाहार भोजन करने वाले, दिव्य आभूषण-पोशाक धारण करने वाले, भोग-विलास नृत्य, वादित्र, संगीत आदि से जीवन-यापन करने वाले होते
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