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उत्तर
प्रश्न उत्तर
प्रश्न उत्तर
- महाहिमवान् पर्वत की अपेक्षा यह लघु है, इसलिये इसे क्षुद्र हिमवान् - कहते हैं। - दूसरे कुलाचल का नाम महाहिमवान् क्यों पड़ा है ? - इसकी व्युत्पत्ति पहले कही हैं कि हिम के सम्बन्ध से हिमवान् पर्वत है और यह महान् हिम के सम्बन्ध से महाहिमवान् कहलाता है- जैसे- इन्द्र जिसकी रक्षा करें उसे इन्द्रगोप कहते है, परन्तु इन्द्र के द्वारा रक्षा नहीं करने पर भी लाल रंग के कीड़े को इन्द्रगोप कहते हैं। यह इसका रूढ़ नाम है, उसी प्रकार महाहिमवान् यह
भी अनादिनिधन रूढ़ नाम है। - महाहिमवान् पर्वत कहाँ पर हैं ? - यह हैमवत और हरिवर्षक्षेत्र का विभाजक है। हैमवत क्षेत्र से उत्तर
और हरिक्षेत्र से दक्षिण में स्थित् महाहिमवान् पर्वत को हैमवत और हरिक्षेत्र विभाजक समझना चाहिये। यह पर्वत दो सौ योजन ऊँचा, भूमितल के नीचे पचास योजन गहरा (नीव) और चार हजार दो सौ दस योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से दस
भाग प्रमाण विस्तृत है। - तीसरे कुलाचल का नाम निषध क्यों पड़ा है? - “निषध" धातु क्रीड़ा अर्थ में है। जिस पर देव-देवियाँ क्रीडा करते हैं वह 'निषध' कहलाता है। जिस पर क्रीडा (आमोद-प्रमोद) के लिये देव-देवियाँ जाते हैं उसे निषध कहते हैं। - निषध किस स्थान पर है ? - हरिक्षेत्र ओर विदेह क्षेत्र की मर्यादा का कारण निषध पर्वत है। हरिक्षेत्र से उत्तर और विदेह क्षेत्र से दक्षिण में इन दोनों की सीमा का कारण भूत निषध नामक कुलाचल है। यह पर्वत चार सौ योजन ऊँचा, भूतल में सौ योजन गहरा तथा सोलह हजार आठ सौ बयालिस योजन एवं एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग अधिक
चौड़ा है। - चतुर्थ कुलाचल की नील संज्ञा (नाम) क्यों है?
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