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________________ है, पच्चीस योजन उत्सेध (ऊँचाई) है। एक कोस छह योजन अवगाहन (जड़) है। तथा पूर्व-पश्चिम की तरफ से यह लवण समुद्र का स्पर्श करता है। 2. हैमवत क्षेत्र- यह क्षेत्र हिमवान् पर्वत के समीप होने से हैमवत क्षेत्र कहलाता है। हिमवान् पर्वत के निकट है अथवा इस क्षेत्र में हिमवान् पर्वत है इसलिए हैमवत यह इस क्षेत्र का नाम पड़ा है। हैमवत क्षेत्र का अवस्थान- यह क्षेत्र हिमवान् और महाहिमवान् के तथा पूर्वापर समुद्रों के मध्य में है। यह हैमवत क्षेत्र क्षुद्र हिमवान् की उत्तर दिशा में महाहिमवान् के दक्षिण भाग में तथा पूर्वापर लवणसमुद्र के बीच में है। 3. हरिवर्ष क्षेत्र- यह क्षेत्र हरि वर्ण के मनुष्य के योग से हरि वर्ष क्षेत्र कहलाता है। 'हरि' का अर्थ सिंह है और सिंह का परिणाम शुक्ल माना गया है। सिंह के समान शुक्ल परिणाम वाले मनुष्य इसमें रहते हैं। अत: इसे हरिवर्ष कहते हैं। हरिवर्ष क्षेत्र का अवस्थान-यह हरिवर्ष क्षेत्र निषधसे दक्षिण, महाहिमवान् से उत्तर और पूर्व पश्चिम समुद्र के मध्य में स्थित है। 4. विदेह क्षेत्र- विदेह के योग से इस क्षेत्र का नाम विदेह क्षेत्र पड़ा। विगत (नहीं है) देह जिसके वह विदेह कहलाता है। कर्मबंध की संतान का उच्छेद होने से जिनके शरीर नहीं है, इसलिए 'विदेह यह नाम है। अथवाजो शरीर सहित होने पर भी शरीर के संस्कार से रहित है - इसलिए 'विदेह' कहलाता है। इस विदेह क्षेत्र में रहने वाले मुनिवर निरन्तर विदेह अर्थात् कर्मबन्ध का उच्छेद करने के लिए वा देह का नाश करने के लिए निरन्तर प्रयत्न करते • हैं और विदेहत्व-अशरीरत्व सिद्ध पद को प्राप्त कर लेते हैं, अत: विदेह मनुष्यों के सम्बन्ध से क्षेत्र का नाम विदेह पड़ गया है। ... शंका- भरत, ऐरावत क्षेत्र से भी मनुष्य विदेहत्व को प्राप्त करते हैं ? समाधान- यद्यपि भरत, ऐरावत से भी मनुष्य विदेहत्व को प्राप्त कर __सकते हैं- परन्तु वह कदाचित्, सर्वकाल नहीं अर्थात् भरत, ऐरावत क्षेत्र में 201. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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