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________________ मनुष्य इस जम्बूद्वीप का घनाकार क्षेत्र सात सौ, नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवें हजार, एक सौ पचास योजन बतलाते हैं। इस जम्बू-द्वीप में सात क्षेत्र, एक मेरू, दो कुरू, जम्बू और शाल्मली नामक दो वृक्ष, छह कुलाचल, कुलाचलों पर स्थित छह महासरोवर, चौदह महानदियाँ, बारह विभंगा नदियाँ, बीस वक्षार गिरी, चौंतीस राजधानी, चौंतीस रूप्याचल, चौंतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएँ, चार गोलाकार नाभिगिरी और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओं के नगर हैं। ऊपर कही हुई इन सभी चीजों से यह जम्बू-द्वीप अत्यधिक सुशोभित है। सात क्षेत्रों के नाम भरतहैमवत हरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि। (10) The divisions Ksettras of Jambudvipa are seven भरत Bharata हैमवत Haimavata हरि Hari विदेह Videha रम्यक Ramyaka हैरण्यवत् Hairanyavata and ऐरावत Airavata भरतवर्ष, हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्यकवर्ष, हैरण्यवर्ष और ऐरावतवर्ष ये सांत क्षेत्र हैं। ... (1) भरतवर्ष- इस क्षेत्र को भरत क्षत्रिय के योग से भरत क्षेत्र कहते हैं। विजयाध पर्वत से दक्षिण, लवण समुद्र से उत्तर और गंगा एवं सिन्धु नदी के मध्य भाग में बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी विनीता नामक नगरी है। उसमें सर्व राज लक्षणों से सम्पन्न भरत नाम का षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती हुआ है। इस अवसर्पिणी के राज्य विभाग काल में उसने ही सर्व प्रथम इस क्षेत्र का उपभोग किया (अनुशासन किया) था इसीलिए उसके अनुशासन के कारण इस क्षेत्र का नाम 'भरतक्षेत्र' पड़ा। अथवा 'भरत' यह संज्ञा अनादिकालीन है, अथवा यह संसार अनादि होने से अहेतुक है, इसलिए 'भरत' यह नाम अनादि सम्बन्ध पारिणामिक है अर्थात् बिना किसी कारण के स्वाभाविक है। जिनसेन स्वामी ने आदि पुराण में कहा है 199 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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