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है और नीचे की छह भूमियों में क्रम से एक सप्ताह, एक पक्ष, एक मास, दो मास, चार मास और छह मास का विरह - अन्तर काल है ।
नरक में उत्पत्ति में कारण:
बह्वारम्भपरिग्रहाः ।
तीव्रमिथ्यात्वसंबद्धा पृथिवीस्ता: प्रपद्यन्ते तिर्यंचो मानुषास्तथा ॥
जो तीव्र मिथ्यात्व से युक्त हैं तथा बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह धारक है ऐसे तिर्यंच और मनुष्य उन पृथिवियों को प्राप्त होते हैं।
नरक में 'लगातार जन्म के बार (क्रम)
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पर्व 4 (372) (ह.पु.)
सातवीं पृथिवी से निकला हुआ जीव यदि पुनः अव्यवहित (निरंतर) रूप से सातवीं में जावे तो एक बार, छटवीं से निकला छटवीं में दो बार, पांचवी से निकला हुआ पांचवी में तीन बार, चौथी से निकला हुआ चौथी में चार बार, तीसरी से निकला हुआ तीसरी में पांच बार, दूसरी से निकला हुआ दूसरी में छ: बार और पहली से निकला हुआ पहली में सात बार तक उत्पन्न हो सकता है।
की कहां-कहां उत्पन्न हो सकते हैं
सातवीं पृथिवी से निकला हुआ प्राणी नियम से संज्ञी तिर्यंच होता है तथा संख्यात वर्ष की आयु का धारक हो फिर से नरक जाता है। छठवीं पृथिवी से निकला हुआ जीव संयम को प्राप्त नहीं होता और पाँचवी पृथिवी से निकला जीव संयम को तो प्राप्त हो सकता है पर मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता । चौथी पृथिवी से निकला हुआ मोक्ष प्राप्त कर सकता है परन्तु तीर्थंकर नहीं हो सकता। तीसरी दूसरी और पहली पृथिवी से निकला हुआ जीव सम्यग्दर्शन की शुद्धता से तीर्थंकर पद प्राप्त कर सकता है। नरकों से निकले हुए जीव बलभद्र, नारायण और चक्रवर्ती पद छोड़कर ही मनुष्य पर्याय प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् मनुष्य तो होते हैं पर बलभद्र नारायण और चक्रवर्ती नहीं हो सकते। नरक में उत्पत्ति के स्वामी
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