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________________ (4) कार्माणकम्मेव य कम्मभवं......(241) ज्ञानावरणादिक अष्ट कर्मों के समूह को अथवा कार्मण शरीर नामकर्म के उदय से होने वाली कायको कार्मणकाय कहते हैं। . ओरालियवेगुब्विय, आहारयतेजणामकम्मुदये। चउणोकम्मसरीरा कम्मेव य होदि कम्मइयं ॥(244) . औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस नामकर्म के उदय से होने वाले चार शरीरों को नोकर्म कहते हैं और कार्मण शरीर नामकर्म के उदय से होने वाले ज्ञानावरणादिक आठ कर्मों के समूह को कामर्ण शरीर कहते हैं। शरीरों की सूक्ष्मता का वर्णन . परं परं सूक्ष्मम्। (37) (Of these 5 bodies) each successive one is finer i.e. subtler than the one preceding it. आगे-आगे का शरीर सूक्ष्म हैं। पूर्व-2 शरीर से उत्तर-2 शरीर सूक्ष्म-2 हैं। सबसे स्थूल शरीर औदारिक शरीर है। औदरिक शरीर से सूक्ष्म वैक्रियिक शरीर है। वैक्रियिक शरीर से सूक्ष्म आहारक शरीर होता है। आहारक शरीर से सूक्ष्म तैजस शरीर है। तैजस शरीर से सूक्ष्म कार्माण शरीर है। ये पांचों शरीर में से पूर्व-2 शरीर से उत्तर-2 शरीर सूक्ष्म होते हुए भी जिन परमाणुओं से ये शरीर बनें है वे परमाणु उत्तरोत्तर .कम नहीं है किन्तु अधिक-अधिक है इसका वर्णन स्वयं सूत्रकार आगे कर • 'रहे हैं। पूर्व-2 शरीर से उत्तर उत्तर शरीर के परमाणु अधिक-2 होते हुए भी उनके सूक्ष्म बंध विशेष के कारण अथवा सूक्ष्म परिणमन के कारण पूर्व-2 शरीर. से उत्तर-2 शरीर सूक्ष्म होते जाते हैं। इसका विशेष वर्णन इसी तत्त्वार्थ - सूत्र के पंचम अध्याय में करेगें। 165 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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