SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संसारी जीवों की गति और समय विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्थ्यः। (28) lausanit Passage from one incarnation to another of a mundane soul (takes place) before 4 (as at the most.) A HUT is the time taken by an atom of matter in passing from one प्रदेश i.e. point of space to the next. ___ संसारी जीवों की गति विग्रहरहित और विग्रहवाली होती है। उसमें विग्रहवाली गति चार समय से पहले अर्थात् तीन समय तक होती है। परन्तु चौथे समय में नहीं होती है। निष्कुट क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले जीव को सबसे अधिक मोड़े लेने पड़ते हैं, क्योंकि वहाँ आनुपूर्वी से अनुश्रेणिका अभाव होने से इषुगति नहीं हो पाती। अत: यह जीव निष्कुट क्षेत्र को प्राप्त करने के लिए तीन मोड़ेवाली गति का प्रारम्भ करता है। यहाँ इससे अधिक मोड़ों की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, इस प्रकार का कोई उपपाद-क्षेत्र नहीं पाया जाता, अत: मोड़े वाली गति तीन समय तक ही होती है, चौथे समय में नहीं होती। 'च' शब्द समुच्चय के लिए दिया है। जिससे विग्रह वाली और विग्रहरहित. दोनों गतियों का समुच्चय होता है। तत्त्वार्थसार में कहा है कि सविग्रहाऽविग्रहा च सा विग्रहगतिर्विधा। अविग्रहैव मुक्तस्य शेषस्यानियमः पुनः॥ (99) अविग्रहकसमया कथितेषु गतिर्जिनैः। 'अन्या द्विसमया प्रोक्ता पाणिमुक्तैकविग्रहा॥ (100) द्विविग्रहां त्रिसमयां प्राहुर्लाङ्गलिकां जिनाः। गोमूत्रिका तु समयैश्चतुर्भि: स्यान्त्रिविग्रहा॥ (101) समयं पाणिमुक्तायामन्यस्यां समयद्वयम्। तथा गोमूत्रिकायां त्रीननाहारक इष्यते॥(102) अ.2पृ.62 सविग्रहा- मोड़सहित और अविग्रहा मोडरहित के भेद से वह विग्रहगति दो प्रकार की होती है। मुक्त जीव की गति अविग्रहा- मोड़रहित ही होती है। 155 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy