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________________ मुक्त जीवों की गति अविग्रहा जीवस्य। (27) The soul in its pure condition, i.e. the liberated) soul has (a Straight upward) vertical movement, the movement is called 3 farier because it is quite direct and upward, vertical and there is no turning in it. मुक्त जीव की गति विग्रह रहित होती है। जीव की स्वाभाविक गति का प्रतिपादन करते हए आचार्य नेमीचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने द्रव्यों के विभिन्न पहलुओं का संक्षिप्त एवं सारगर्भित प्रतिपादक द्रव्य संग्रह शास्त्र में उल्लेख करते हैं कि “विस्ससोड्ढगई" अर्थात् जीव की स्वाभाविक गति उर्ध्वगमन स्वरूप है। अमृतचन्द्र सूरि तत्त्वार्थसार में जीव एवं पुद्गल के स्वभाव का वर्णन करते हुए उल्लेख करते है कि उर्ध्वगौरवधर्माणो जीवा इति जिनोत्तमैः। अधोगौरवधर्माणः पुद्गला इति चोदितम्॥ (32 अ.पृ.199) सर्वज्ञ – सर्वदर्शी जिनेन्द्र भगवान ने जीव को उर्ध्व गौरव (उर्ध्व गुरूत्व) धर्म वाला बताया है और पुद्गल को अधोगौरव (अधोगुरूत्व) धर्म वाला प्रतिपादित किया है। जीव की स्वाभाविक गति उर्ध्व से उर्ध्वगमन करने की है। पुद्गल (MATTER) की स्वाभाविक गति नीचे से नीचे की ओर है। कारण यह है कि, जीव के अमूर्तिक (स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, वजन से रहित) एवं स्थानान्तरित रूप गति क्रिया-शक्ति से युक्त होने के कारण उसकी गति उर्ध्वगमन होना स्वाभाविक है। उदाहरणार्थ :- हाइड्रोजन गैस लीजिए। हाइड्रोजन गैस से भरे हुए बैलून को मुक्त करने पर वह बैलून धीरे-2 ऊपर ही गमन करता रहता है। यदि वह बैलून किसी कारणवश फटा नहीं तो वह गति करते-2 उस ऊँचाई तक पहुँचेगा जहाँ तक वायुमण्डल की तह में हाइड्रोजन ही हाइड्रोजन गैस है। हाइड्रोजन - बैलून का ऊपर स्वाभाविक गमन करने का कारण यह है कि हाइड्रोजन गैस साधारण हवा से 14 गुणा हल्की होती है। जब हाइड्रोजन 152 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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