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________________ में आलम्बन से ज्ञान होता है। अथवा श्रुत शब्द का अर्थ श्रुतज्ञान है। और वह मन का अर्थ अर्थात् प्रयोजन है। यह प्रयोजन मन के स्वत: आधीन है इसमें उसे दूसरे के साहाय्य की आवश्यकता नहीं लेनी पड़ती। यहाँ श्रुत शब्द का अर्थ श्रुतज्ञान का विषय या श्रुतज्ञान किया है और उसे अनिन्द्रिय का विषय बतलाया है। आशय यह है कि श्रुतज्ञान की उपयोग दशा पाँच इन्द्रियों के निमित्त से न होकर केवल अनिन्द्रिय के निमित्त से होती है। इसका यह अभिप्राय नहीं कि, अनिन्द्रिय के निमित्त से केवल श्रुतज्ञान ही होता है, किन्तु इसका यह अभिप्राय है कि, जिस प्रकार मतिज्ञान इन्द्रिय और अनिन्द्रिय दोनों के निमित्त से होता है उस प्रकार श्रुतज्ञान इन दोनों के निमित्त से न होकर केवल अनिन्द्रिय के निमित्त से होता है। इन्द्रियों के स्वामी वनस्पत्यन्तानामेकम् (22) The earth- bodied, fire-bodied, air-bodied water-bodied up to the vegetable-bodied, souls (have only) one sense i,e, touch. They know only by means of touch. वनस्पतिकायिक तक के जीवों के एक अर्थात् प्रथम इन्द्रिय होती है। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक की केवल प्रथम इन्द्रिय अर्थात् स्पर्श इन्द्रिय ही होती है। ... वीर्यान्तराय तथा स्पर्शन इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम के होने पर और शेष इन्द्रियों के सर्वघाति स्पर्धकों के उदय होने पर तथा शरीर नामकर्म के आलम्बन होने पर और एकेन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय की आधीनता के रहते हुए एक स्पर्शन इन्द्रिय प्रकट होती है। । कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैक वृद्धानि । (23) कृमि Worms etc; (have 2 Senses : touch and taste). fuuftfacht Ants, ect; (have 3 Senses: touch, taste, smell.) भ्रमर Bumble-bee, etc. (have 4 Sense: touch, taste, smell and sight.) मनुष्य Man etc; (have 5 Sense: touch, taste, smell sight and hearing.) Jain Education International 145 * www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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