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________________ पदार्थों की अपेक्षा अनेक प्रकार के प्रकाश जगत् में परिमित क्षेत्र में रहते हैं; किन्तु जो लोक और अलोक दोनों जगह प्रकाश करता है, ऐसे प्रकाश को 'केवल दर्शन' कहते हैं। समस्त पदार्थों का जो सामान्य दर्शन होता है उसको केवलदर्शन' कहते हैं। जीव के भेद संसारिणो मुक्ताश्च । (10) They are of 2 kinds: संसारी Mundane and मुक्त liberated Souls. जीव दो प्रकार के हैं-- संसारी और मुक्त। वस्तुतः जीव द्रव्य एक प्रकार के होते हुए भी कर्म सहित एवं कर्म रहित की अपेक्षा जीव 2 प्रकार के हो जाते हैं। कर्म सहित जीव संसारी है तथा कर्म रहित जीव मुक्त है। कहा भी है जीवा संसारत्था णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा॥(109) उवओगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा। प.का.मृ.280) जीव दो प्रकार के हैं- (1) संसारी अर्थात् अशुद्ध और (2) सिद्ध अर्थात् शुद्ध । वे दोनों वास्तव में चेतनास्वभाव वाले हैं और चेतना परिणामस्वरूप उपयोग द्वारा लक्षित होने योग्य है। उसमें संसारी जीव देह में वर्तनेवाले अर्थात् . .. देह सहित है और सिद्ध जीव देह में न वर्तनेवाले अर्थात् देह रहित है। . . . ..............मिच्छादसणकसायजोगजुदा। विजुदा य तेहिं बहुगा सिद्धा संसारिणो जीवा ॥(32) मिथ्यादर्शन - कषाय योगसहित संसारी है और अनेक मिथ्यादर्शन - कषाय योग रहित सिद्ध है। संसारी जीवों के भेद समनस्कामनस्काः । (11) The mudane souls are of 2 kinds :समनस्क Rational, thouse who have a mind; i,e. the faculty 127 Jain Education International For Personal & Private Use Only For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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