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________________ * पारिभाषिक शब्द-कोष * ४९१ * एवं तदनुसार शुद्धात्म-लक्षी आचरण करना बहुश्रुत-भक्ति है। (II) अथवा स्व-पर-सिद्धान्तों (समयों) के ज्ञाता बहुश्रुत कहलाते हैं, उनके प्रति भक्ति, बहुमान तथा निर्मल परिणाम के साथ अनुराग रखना बहुश्रुत-भक्ति है। बादर-(I) बादर शब्द स्थूल का पर्यायवाची है। (II) छिन्न होकर भी जो स्वयं जुड़ने में समर्थ हैं, वे दूध, घी, तेल, पानी आदि बादर माने जाते हैं। (III) कर्मस्कन्धों की स्थूलता को भी बादर कहते हैं। ___ बादर-सम्पराय-सम्पराय कहते हैं-कषाय को। जिस जीव के बादर (स्थूल) सम्पराय होता है-संसार में परिभ्रमण कराने वाला कषायोदय होता है, उसे बादर-सम्पराय कहते हैं। इसके अधिकारी प्रमत्त-संयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिकरण (बादर) गुणस्थानवर्ती जीव विवक्षित हैं। इसे बादर-सम्पराय भी कहते हैं। ___ बाल-जिसकी प्रवृत्ति अविवेकपूर्ण असत् (निकृष्ट) होती है, अथवा जो असदाचरण करता है ऐसा विशिष्ट विवेक-विकल, कुज्ञान-परायण व्यक्ति बाल कहलाता है। वह स्थूल असंयम से भी निवृत्त नहीं होता। बालतप-बाल कहते हैं-मूढ़ को, जो हिताहित-विवेक-विकल होता है, जिसे धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप का बोध नहीं होता। ऐसे बाल द्वारा निदान या मिथ्याज्ञानादि से या मायाचार से प्रेरित हो कर बाह्याभ्यन्तरतप करना बालतप है। बालतप मोक्ष का साधक न हो कर संसारवर्द्धक होता है। उसका तप अत्यधिक कायकष्टपूर्ण होता है। बालमरण-जो किसी प्रकार से आत्महत्या करके या तीव्र कषायवश मरता है, या किसी दुर्घटना में असमाधिपूर्वक मरता है, उस मिथ्यादृष्टि और मिथ्याज्ञानी या पापाचारी व्यक्ति का मरण बालमरण या अनिच्छा से विवशतापूर्वक मरण भी बालमरण है। त्रिरत्न से रहित होने के कारण उसका वह अकाममरण बालमरण है। बालक की तरह जो बाल (अबोध) एवं अविरत है, उसका मरण।। बालपण्डितमरण-(I) जो समस्त असंयम (अविरति) के परित्याग में असमर्थ होने के कारण हिंसादि पापों से एकदेश से विरत होता है, यानी स्थूल हिंसादि पापों का त्याग करता है, वह देशविरत होता है, इस देशविरत में भी जो देशतः विरत (सम्यग्दृष्टि) होता है, उस एकदेशविरत के मरण को बालपण्डितमरण कहा जाता है। (II) यहाँ बाल का अर्थ है-असंयत सम्यग्दृष्टि और पण्डित का अर्थ है-संयत। इस प्रकार संयमासंयमी, असंयत-संयत, विरताविरत बालपण्डित कहलाते हैं। उनका समाधिपूर्वक मरण बालपण्डितमरण है। बाल-बालमरण-जो व्यवहार-पाण्डित्य, सम्यक्त्व-पाण्डित्य, ज्ञान-पाण्डित्य और चारित्र-पाण्डित्य इन सबसे रहित होता है, उसे बाल-बाल कहते हैं, उसके मरण को बाल-बालमरण कहते हैं। बाह्यतप-(I) जो तप बाह्यद्रव्य की अपेक्षा रखता है, तथा दूसरों के देखने में भी आता है, जिस तप को लौकिक जन भी जान लेते हैं, सम्यग्दर्शनपूर्वक वह अनशन आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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