SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 592
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ४३८ * कर्मविज्ञान भाग ९ : परिशिष्ट * क्लिष्ट-(I) क्लेशयुक्त। (II) कठिन, विषम। (III) क्लेशजनक। कुप्रवचन-दूषित शास्त्र। कुप्रावचनिक-दूषित सिद्धान्त का अनुसरण करने वाला। क्रोध-(I) मोहनीय कर्म के उदय से अप्रीतिरूप, द्वेषमय परिणाम उत्पन्न होना। (II) स्व-पर के उपघात व अनुपकार के विचार से क्रूरतारूप परिणाम उत्पन्न होना। क्लिश्यमान-असातावेदनीय के उदयजनित पीड़ा के अनुभव से दुःखी हुए जीव क्लिश्यमान कहलाते हैं। (क्ष = क्ष) क्षपक-चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करने वाला साधक। क्षपकश्रेणी-मोहनीय कर्म का क्षय करता हुआ अप्रमत्त साधक जिस श्रेणीअपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म-सम्पराय और क्षीणमोह, इन चार गुणस्थानों रूप निसैनी पर आरूढ़ होता है, उसे क्षपकश्रेणी कहते हैं। इसे क्षपणदृष्टि या क्षायिकीश्रेणी भी कहते हैं। क्षपण-(I) क्रोध, मान, माया और मद का क्षय करने वाले जीव की यह सार्थक क्षपण संज्ञा है। (II) आठों कर्मों की मूल और उत्तरकर्मप्रकृतियों के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशबन्धों का पृथक्भाव = निर्मूल विनाश होना। क्षमण-दूसरों के द्वारा किये हुए अपराधों को स्वयं क्षमा करना। क्षमा-(I) क्रोध की उत्पत्ति के निमित्तभूत बाह्य कारण के प्रत्यक्ष में होने पर भी जरा भी क्रोध-रोष-आवेश न करना। (II) प्रतीकार करने का सामर्थ्य होने पर भी अपकार को सहन करना। (III) दशविध उत्तम धर्मों (श्रमणधर्मों) में सर्वप्रथम धर्म क्षमा' है। क्षमापण-(I) आचार्य आदि की क्षमा का ग्रहण करना। (II) आचार्यादि से क्षमा माँगना क्षमापण है। क्षमापना-सर्व जीवों से अपने द्वारा किये गए अपराध के लिए क्षमा माँगना और उन जीवों द्वारा किये गए अपराध के लिए क्षमा करना-अर्थात् क्षमा लेना और क्षमा देनाक्षमापना है। सांवत्सरिक पर्व दिवस को क्षमापर्व, क्षमापना दिवस भी कहते हैं। क्षय-कर्मों की आत्यन्तिकी निवृत्ति अर्थात् कर्म का सर्वथा नष्ट हो जाना क्षय है। क्षयोपशम-(I) सर्वघातिस्पर्द्धक अनन्त गुणहीन होकर देशघातिस्पर्द्धकरूप से परिणत होते हुए उदय को प्राप्त होते हैं, उनकी अनन्त गुणहीनता का नाम क्षय है, उन्हीं का देशघातिरूप में अवस्थित रहना उपशम है। इस प्रकार के क्षय और उपशम के साथ जो उदय होता है, वह क्षयोपशम कहलाता है। (II) परिणामों की निर्मलता से कर्मों के एकदेश का क्षय और एकदेश का उपशम होना क्षयोपशम है। (11) कर्मों के क्षय और उपशम से उत्पन्न हुआ गुण क्षायोपशमिक कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy