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* २६२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
में बताई थी, उसी प्रकार सोच्चा केवली के भी प्रशस्ततर अध्यवसाय के प्रभाव से अवधिज्ञान से लेकर केवलज्ञान-केवलदर्शन-प्राप्ति तक की प्रक्रिया समझ लेनी चाहिए।'
आगे सोच्चा केवली के सम्बन्ध में केवलज्ञान-प्राप्ति के अनन्तर प्रश्न किये गये हैं-क्या पूर्वोक्त सोच्चा केवली केवलिप्रज्ञप्त धर्म कहते (उपदिष्ट करते) हैं, भिन्न-भिन्न करके बतलाते हैं या प्ररूपित करते हैं ? इसके उत्तर में भगवान ने कहाहाँ, वे केवलिप्रज्ञप्त धर्म कहते, बतलाते और प्ररूपित भी करते हैं। वे सोच्या केवली किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित भी करते हैं ? इसके उत्तर में भी भगवान ने कहा-हाँ, वे प्रव्रजित भी करते हैं, मुण्डित भी करते हैं। जब भगवान से पूछा गया कि क्या उनके शिष्य और प्रशिष्य भी किसी को प्रव्रजित या मुण्डित करते हैं ? तो इसका भी उत्तर भगवान ने हाँ में दिया है। आगे का प्रश्न है कि क्या वे सोच्चा केवली तथा उनके शिष्य और प्रशिष्य भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त यावत् सर्वदुःखों से रहित होते हैं ? इसके उत्तर में भी भगवान ने कहा-हाँ, वे और उनके शिष्य-प्रशिष्य भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं, यावत् सर्वदुःखों (कर्मों) का अन्त करते हैं। सच्चा केवली का अवस्थान तथा एक सामायिक संख्या
इसके आगे सोच्चा केवली के सम्बन्ध में बताया गया है कि वे ऊर्ध्वलोक में भी होते हैं. अधोलोक में भी और तिर्यग्लोक में भी होते हैं। इन तीनों लोकों में कहाँ-कहाँ होते हैं ? इसका सब समाधान अंसोच्चा केवली के समान जान लेना चाहिए। इसी प्रकार सोच्चा केवली एक समय में जघन्य एक, दो या तीन तक होते हैं और उत्कृष्ट १०८ होते हैं।
इस प्रकार असोच्चा केवली और सोच्चा केवली के विषय में ‘भगवतीसूत्र' में बताया गया है। केवलज्ञान : स्वरूप और उसकी प्राप्ति के मुख्य और अवान्तर कारण
विभिन्न प्रकार से केवलज्ञानियों के सम्बन्ध में विवेचन करने के बाद यह प्रश्न उठता है कि जिस केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद मुक्ति निश्चित है, अवश्यम्भावी है,
१. भगवतीसूत्र, खण्ड २, श. ९, उ. ३१, सू. २६ के अनुसार समझे अवधिज्ञानी को
केवलज्ञान-प्राप्ति तक की प्रक्रिया (आ. प्र. स., व्यावर). पृ. ४४७ २. वही, खण्ड २, श. ९, उ. ३१, सू. ४०-४२/३, विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर),
पृ. ४५४-४५५ ३. वही, खण्ड २, श. ९, उ. ३१, सू. ४३-४४, विवेचन (आ. प्र. स., व्यावर),
पृ.४५५-४५६
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