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________________ * १३२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ * (१३) गृहि (गृहस्थ) लिंगसिद्ध-गृहस्थवेश में धर्माचरण करते-करते परिणाम विशुद्धि हो जाने पर केवलज्ञान और वीतरागता प्राप्त हो जाने पर जो मुक्त हों, वे . गृहिलिंगसिद्ध हैं। जैसे-मरुदेवी माता। (१४) एकसिद्ध-जो व्यक्ति एक समय में अकेले ही सिद्ध-मुक्त हों, वे एकसिद्ध हैं। (१५) अनेकसिद्ध-एक समय में एक से अधिक (दो, तीन आदि से लेकर . १०८ तक सिद्ध-मुक्त होने वाले अनेकसिद्ध कहलाते हैं।' एक समय में जघन्य और उत्कृष्ट कितने सिद्ध होते हैं ? प्रश्न होता है-जैनसिद्धान्त की दृष्टि से एक समय में अधिक से अधिक कितने । मनुष्य सिद्ध-मुक्त होकर मोक्ष जा सकते हैं ? इसके लिए एक गाथा में बतलाया गया है , 'बत्तीसा अडयाला सट्ठी बावत्तरी य बोद्धव्वा। चुल्लसीई छनउई उ दुरहियमद्दुत्तर-सयं च॥" . इसका भावार्थ यह है कि एक समय से आठ समय तक एक से लेकर बत्तीस जीव मोक्ष जा सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि पहले समय में जघन्य एक, दो और उत्कृष्ट ३२ जीव सिद्ध-मुक्त हो सकते हैं। इसी तरह दूसरे समय में भी जघन्य एक, दो और उत्कृष्ट ३२ जीव सिद्ध हो सकते हैं। इसी तरह तीसरे, चौथे यावत् आठवें समय तक जघन्य एक, दो और उत्कष्ट ३२ जीव सिद्ध हो सकते हैं। आठ समयों के पश्चात् निश्चित रूप से अन्तर पड़ता है। ३३ से लेकर ४८ जीव निरन्तर सात समय तक मोक्ष जा सकते हैं। उसके पश्चात् निश्चित रूप से अन्तरा पड़ता है। ४९ से लेकर ६० तक जीव निरन्तर छह समय तक मोक्ष जा सकते हैं। इसके पश्चात् अन्तरा अवश्य पड़ता है। ६१ से ७२ तक जीव निरन्तर ५ समय तक, ७३ से ८४ तक निरन्तर ४ समय तक तथा ८५ से ९६ तक निरन्तर ३ समय तक, ९७ से १०२ तक निरन्तर २ समय तक मोक्ष जा सकते हैं। इसके बाद निश्चित रूप से अन्तरा पड़ता है। १०३ से लेकर १०८ तक जीव निरन्तर एक समय में मोक्ष जा सकते हैं; अर्थात् एक समय में उत्कृष्ट १०८ सिद्ध हो सकते हैं। इसके पश्चात् अवश्य १. (क) “जैनतत्त्वकलिका' से भाव ग्रहण, पृ. १०१ (ख) “जैनसिद्धान्त बोल संग्रह, भा. ५' से भाव ग्रहण, पृ. ११९-१२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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