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* ६२. * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
(१) तीर्थंकर के तीर्थंकर नामकर्म का उदय है: जबकि सामान्य केवली के ..
नहीं।
(२) तीर्थंकर पूर्व-जन्म में दो भव से निश्चित सम्यग्दृष्टि होते हैं; सामान्य केवली के लिए ऐसा नियम नहीं है।
(३) तीर्थंकर की माता १४ स्वप्न देखती है; सामान्य केवली की माता के लिए ऐसा जरूरी नहीं। ___ (४) तीर्थंकर दीक्षा ग्रहण से पूर्व वर्षीदान देते हैं; सामान्य केवली भी दे सकते हैं, पर ऐसा नियम नहीं है।
(५) तीर्थंकर केवलज्ञान की प्राप्ति से पहले प्रवचन नहीं करते, सामान्य प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं; किन्तु सामान्य केवली छद्मस्थ अवस्था में भी उपदेश देते हैं।
(६) तीर्थंकर के पंच-कल्याणक होते हैं; सामान्य केवली के नहीं होते।
(७) तीर्थंकर को दीक्षा लेते ही मनःपर्यवज्ञान हो जाता है; सामान्य केवली को. नहीं होता।
(८) तीर्थंकर स्वयंबुद्ध होते हैं; सामान्य केवली के लिए ऐसा नियम नहीं।
(९) तीर्थंकर चतुर्विध धर्मतीर्थ (श्रमण-संघ) की स्थापना करते हैं; सामान्य केवली नहीं करते।
(१०) तीर्थंकर को दीक्षा लेने से पूर्व लोकान्तिक देव (अपने जीताचार के कारण) उद्बोधन करने आते हैं; सामान्य केवली के लिए ऐसा नियम नहीं है।
(११) तीर्थंकर का (धर्म) शासन (धर्म-संघ) चलता है; सामान्य केवली का नहीं।
(१२) तीर्थंकर के (संघ-संचालक) मुख्य शिष्य गणधर होते हैं; सामान्य केवली के शिष्य गणधर नहीं होते।
(१३) तीर्थंकर के अष्ट महाप्रातिहार्य होते हैं; सामान्य केवली के नहीं होते। (१४) तीर्थंकर के ३४ अतिशय होते हैं; सामान्य केवली के नहीं।
(१५) तीर्थंकर की वाणी के ३५ विशिष्ट अतिशय (गुण) होते हैं; जबकि सामान्य केवली के नहीं होते।
(१६) तीर्थंकर तीर्थंकर-भव में पहले, दूसरे, तीसरे, पाँचवें.और ग्यारहवें गुणस्थान का स्पर्श नहीं करते; जबकि सामान्य केवली ग्यारहवें गुणस्थान को छोड़कर अन्य सभी गुणस्थानों का स्पर्श कर सकते हैं।
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