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ॐ ४४४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
के दिन देवकी महारानी के यहाँ दो-दो मुनियों का संघाटक (संघाड़ा) भिक्षा के लिए पहुँचने, महारानी को विस्मय और संशय हुआ। उसका निवारण पिछले मुनिद्वय के संघाटक ने किया। संशय निवारणार्थ देवकी रानी का अरिष्टनेमि भगवान के पास पहुँचना, भगवान द्वारा उसी के पुत्र बताने पर देवकी रानी का मोह, वात्सल्य और फिर पुत्र-पालन न करने की चिन्ता, श्रीकृष्ण द्वारा पुत्र-प्राप्ति होने का आश्वासन तथा गजसुकुमाल का जन्म तथा दीक्षा ग्रहण एवं उसी दिन १२वीं भिक्षु प्रतिमा में सोमल द्वारा दिये गये घोर उपसर्ग को समभाव से सहन करने एवं एकमात्र आत्म-स्वरूप में स्थिर होने पर अन्तःक्रिया करके सर्वकर्मक्षय कर मोक्ष प्राप्त करने का प्रेरक और रोचक वर्णन है। गजसुकुमाल मुनि के सिवाय शेष १२ मुनियों में से .. ६ सहोदर मुनियों ने १४ पूर्वो का अध्ययन किया, १२ वर्ष तक निर्दोष संयम-पालन किया और अन्तिम समय में शत्रुजय पर्वत पर समाधिमरणपूर्वक अन्तःक्रिया करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। शेष ६ मुनियों के बलभद्र राजा पिता और धारिणी रानी माता थी। उन्होंने भी यौवनवय में विरक्त होकर दीक्षा ली और ज्ञानादि चतुष्टय की आराधना करके अन्तःक्रिया कर मोक्ष प्राप्त किया।
चौथे वर्ग में १0 अध्ययन हैं। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के अंगज जाली, मयाली, उवमाली, पुरुषसेन, वारिषेण एवं प्रद्युम्न, ये ६ सहोदर भाई थे, शाम्बकुमार जाम्बवती रानी का पुत्र था, अनिरुद्ध प्रद्युम्न-पुत्र था, सत्यनेमि और दृढ़नेमि ये दोनों समुद्रविजय जी के पुत्र थे। इन सबने यौवनवय में विषयभोगों से विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण की और पूर्ववत् ज्ञानादि चतुष्टयरूप मोक्षमार्ग की आराधना करके अन्तःक्रिया की और मोक्ष प्राप्त किया। ___ पंचम वर्ग में श्रीकृष्ण जी की १0 पटरानियों (पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुषीमा, जाम्बवती, सत्यभामा, रुक्मिणी, मूलश्री और मूलदत्ता) के द्वारा विरक्त होकर अन्तःक्रिया करके और मुक्ति प्राप्त करने का वर्णन है। इन दसों की विरक्ति और अन्तःक्रिया करने के पीछे एक बहुत बड़ा निमित्त मिला द्वैपायन ऋषि द्वारा द्वारिका नगरी के विनाश का और श्रीकृष्ण जी द्वारा उद्घोषणा का कि जो अपना आत्म-कल्याण करने के लिए तत्पर होंगे, वे सुरक्षित रह सकेंगे। यही निमित्त बना-चतुर्थ और पंचम वर्ग में उल्लिखित २० महान् आत्माओं द्वारा अन्तःक्रिया करके मोक्ष प्राप्त करने का।
श्रीकृष्ण जी द्वारा भागवती दीक्षा ग्रहण करने वालों को आश्वासन एवं अनेक लोगों को दीक्षा दिलाने में निमित्त बनने से सर्वोच्च पुण्यराशिरूप तीर्थंकर नामगोत्र १. (क) अन्तकृद्दशांगसूत्र, वर्ग १-३, संक्षिप्त सारगर्भित वर्णन
(ख) मासियाए संलेहणाए बारस बरिसाइं परियाए जाव सिद्धे । -प्रथम वर्ग (ग) सोलसवासाइं परियाओ सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धे। -द्वितीय वर्ग (घ) वीसं वासा परियाओ चोद्दस (पु.) सेत्तुंज्जे जाव सिद्धा। -तृतीय वर्ग, अ. १-६
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