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ॐ ४३४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
संज्ञी मनुष्यपर्याय में ही मोक्ष-प्राप्तिरूपा अन्तःक्रिया सम्भव
इस मूत्रपाट में मोक्ष-प्राप्तिम्पा अन्तःक्रिया के सम्बन्ध में प्रश्न है और उसका समाधान चोवीस दण्डकवर्ती समुच्चय जीवों की अपेक्षा से दिया गया है। अगले :-४ सूत्रपाटों में चोवीस दण्डकवी जावां में से पृथक्-पृथक् प्रत्येक दण्डकवर्ती जाद के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा गया है और उसके समाधान का निष्कर्ष यह है कि यंता मनप्वपर्याय के सिवाय कोई भी अन्य दण्डकवर्ती जीव मोक्ष-प्राप्तिरूपा अन्तःक्रिया नहीं कर सकता है।' मोक्ष प्राप्तिम्पा अन्तःक्रिया का स्वरूप और प्राप्ति-अप्राप्ति का रहस्य
नक कारणों की मीमांसा करने से पूर्व मोक्ष-प्राप्तिरूपा अन्तःक्रिया का विशद स्वरूप समझ लेना चाहिए। प्रज्ञापनासूत्र के २0वें पद के अन्तःक्रियाद्वार में इसका परिष्कृत म्वरूप इस प्रकार बताया गया है-"जो जीव तथाविध भव्यत्व के भरपाकवश मनुष्यत्व आदि समग्र सामग्री प्राप्त करके, उस सामग्री के बल से प्रकट हाने वाले अतिप्रबल वीर्य के उल्लास से क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त क. कवल चार घातिकर्मों का ही नहीं, शेष रहे चार अघातिकर्मों का भी क्षय (अन्न) कर देता है, वही मनुष्य अन्तःक्रिया कर पाता है, अर्थात् समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय करके मोक्ष प्राप्त करता है। इससे विपरीत प्रकार का जीव, चाहे मनुष्य ही क्यों न हो, अन्तःक्रिया (मोक्ष-प्राप्ति) नहीं कर सकता। इस स्पष्टीकरण के अनुसार समग्त जीवों की मोक्ष-प्राप्तिरूपा अन्तःक्रिया की प्राप्ति-अप्राप्ति समझ लेनी चाहिए। नारक और देव अपनी-अपनी पर्याय में अन्तःक्रिया क्यों नहीं कर सकते ?
इस पर से यह स्पष्ट है, तथाविध मनुष्य के सिवाय नारकों से लेकर वैमानिक देवों तक के जीव अपनी-अपनी पर्याय में रहते हुए, इसलिए अन्तःक्रिया नहीं कर सकत कि समस्त कर्मों का क्षय (मोक्ष) तभी होता है, जब सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, ये तीनों मिलकर प्रकर्ष को प्राप्त हों, यानी सम्यग्दर्शन भी क्षायिक हो, साथ ही सम्यग्ज्ञान भी केवलज्ञानरूप हो और सम्यकचारित्र भी यथाख्यातरूप हो। 'उत्तगध्ययनसूत्र' में स्पष्ट कहा है-“सम्यग्दर्शनरहित व्यक्ति को सम्यग्ज्ञान नहीं होता और सम्यग्ज्ञान के बिना चारित्रगुण प्राप्त नहीं होता एवं सम्यकचारित्रगुण-प्राप्ति के विना मोक्ष (सर्वकर्मक्षय) नहीं हो सकता और मोक्ष के विना निर्वाण (अचल चिदानन्दरूप) नहीं होता।"३ सम्पूर्ण कर्मक्षय तीनों की पूर्ण १. देखें-प्रज्ञापनासूत्र, खण्ड २. पद २०, सू. १४०७/२ की व्याख्या (आ. प्र. समिति,
व्यावर). पृ. ३७९ २. देखें-वही, विवेचन, पृ. ३७९, प्रज्ञापना मलय. वृत्ति, पृ. ३९७ ३. नादंमणिम्स हुंति नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा।
अगुणिम्म नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खम्स निव्वाणं॥ -उत्तराध्ययन, अ. २८, गा. ३०
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