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ॐ निर्जरा के विविध स्रोत ॐ २५५ ॐ
गया है-“पाँच कारणों (उपायों) से छद्मस्थ व्यक्ति उदीर्ण (उदय-प्राप्त या उदीरणा-प्राप्त) परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से समभाव से (अविचलभाव से) सहता है, खमता है (क्षान्ति रखता है), तितिक्षा रखता है या उनसे प्रभावित नहीं हो पाता। जैसे कि (१) यह पुरुष उदीर्णकर्मा है (इसके पूर्वबद्ध कर्म उदय में आये हैं) इसलिए यह उन्मत्तक (पागल) जैसा हो रहा है, इसी कारण मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है या मेरा उपहास करता है या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है अथवा मेरी निर्भर्त्सना करता है या मुझे बाँधता या रोकता है या मेरा छविच्छेद (अंगभंग) करता है या पमार (मूर्छित) करता है या उपद्रुत करता (डाँटता-फटकारता या डराता) है अथवा मेरे वस्त्र, पात्र (बर्तन), कम्बल, पादपोंछन आदि छेदन-विच्छेदन (फाड़ता-तोड़ता) है, चीरता है या भेदन (टुकड़े-टुकड़े) करता है अथवा अपहरण करता है।'' ___ (२) “यह व्यक्ति निश्चय ही यक्षाविष्ट (भूत, प्रेत आदि से ग्रस्त) है, इसलिए वह मुझ पर आक्रोश करता है, गाली देता है या मेरा उपहास करता है या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है या मेरी निर्भर्त्सना करता है या मुझे बाँधता या रोकता है या छविच्छेद करता, मूर्छित करता या मुझ पर उपद्रव करता है या वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन आदि का छेदन-विच्छेदन-भेदन या अपहरण करता है।"
(३) “इस भव में मेरा वेदन करने (भोगने) योग्य कर्म उदय में आ रहा है, इसीलिए तो वह व्यक्ति मुझ पर आक्रोश करता है, यावत् अपहरण करता है।"
(४) “यदि मैं इन्हें सम्यक् प्रकार से अविचलभाव से नहीं सहँगा, क्षान्ति और तितिक्षा नहीं रखूगा तथा उनसे प्रभावित हो जाऊँगा तो मुझे एकान्ततः पापकर्म का बंध होगा।"
(५) “यदि. मैं इन्हें सम्यक् प्रकार से अविचलभाव से सहन कर लूँगा, क्षान्ति और तितिक्षा रखूगा तथा उनसे प्रभावित नहीं होऊँगा, तो मुझे एकान्तरूप से (सकाम) निर्जरा होगी।" - उपर्युक्त पाँच चिन्तन (अनुप्रेक्षण) उपायों से जो छद्मस्थ व्यक्ति परीषहों या उपसर्गों को समभाव से अविचल मन से सह लेता है, उसके निश्चित ही सकामनिर्जरा होती है। इसी प्रकार का विधायक चिन्तन परीषहों और उपसर्गों के समय किया जाए तो अनायास ही सकामनिर्जरा हो सकती है। .१. (क) मार्गाच्यवन-निर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहाः। -तत्त्वार्थ, अ. ९, सू. ८-९ ___(ख) सम्म सहमाणसणिज्जरा कज्जति।
-स्थानांग, स्था. ५, उ. १ २. पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिण्णे परिस्सहोवसग्गे समं सहेज्जा, खमेज्जा, तितिक्खेज्जा,
अहियासेज्जा, तं.-(१) उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते; तेण मे एस पुरिसे
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