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________________ १५४ कर्मविज्ञान : भाग ७ इस पर पुन: विचार करें। " गणधर गौतम ने सोचा - " सम्भव है, मेरे समझने में कहीं भूल हो।" वे सीधे भगवान महावीर के पास पहुँचे और उन्होंने इस बात का स्पष्ट निर्णय भगवान से चाहा । भगवान ने स्पष्ट कहा - " गौतम ! आनन्द श्रावककी भूल नहीं है, भूल तुम्हारी है। तुमने उसे प्रायश्चित्त के लिए कहकर उसका दिल दुखाया। अतः इसी समय वापस जाकर अपनी भूल के लिए आनन्द से क्षमा माँगो और उसका मनः समाधान करो।" गणधर गौतम ने आनन्द श्रावक के समक्ष अपनी भूल स्वीकार की और उसके लिए क्षमायाचना की । ' यह था आप्तपुरुष द्वारा समर्पित या श्रद्धालु व्यक्ति को उसकी भूल देखकर उसे बताने और सुधारने का ज्वलन्त उदाहरण ! भगवान ने महाशतक श्रावक की भूल सुधारी इसी प्रकार 'उपासकदशांगसूत्र' में महाशतक श्रावक का उदाहरण भी प्रसिद्ध है। जब महाशतक श्रावक अपनी पौषधशाला में पौषधव्रत साधनालीन था । उसकी पत्नी रेवती उसे सांसारिक विषयभोगों में फँसाने और ललचाने के लिए जोर-शोर से प्रयत्न करने लगी। विविध हाव-भावों और लुभावने मोहक वचनों से आकृष्ट करने का उसने अथक प्रयत्न किया, परन्तु महाशतक को अब अपने जीवन में कामभोगों से अरुचि हो गई थी। अपनी अन्तिम साधना में दृढ़ रहने के कारण उसे भी अमुक सीमा तक का अवधिज्ञान हो गया था। उसने जब देखा कि यह मेरे न चाहने पर भी बार-बार एक ही रट लगाकर मुझे झकझोर रही है, तब उस पर रोष आ गया और अवधिज्ञान से उसका आयुष्य सिर्फ ७ दिन का और नरक गतिप्रयाण का भविष्य जान - देखकर रोषवश कहा - " रेवती ! तू बार-बार मुझे मेरी रुचि के विपरीत बातें कहकर तंग मत कर। तू नहीं जानती है - आज से सातवें दिन मरकर तू अमुक नरक में जाएगी।" यह सुनते ही रेवती को बहुत ही मानसिक आघात लगा । वह सोचने लगी- पति मेरे से रुष्ट हो गए हैं । २ अतः वह उदास होकर चली गई। यद्यपि बात सत्य थी, परन्तु पौषधव्रती श्रमणोपासक महाशतक ने वह बात रोष और आवेश में आकर कही थी, इसलिए उसकी इस भूल को सुधारने हेतु भगवान महावीर ने गणधर गौतम द्वारा सन्देश भिजवाया कि “तुमने पौषधव्रत में रेवती को मर्मान्तक कठोर वचन कहकर व्रत में दोष लगाया है। अतः इसकी आलोचना करके प्रायश्चित्त ग्रहण कर आत्म-शुद्धि करो। " महाशतक श्रावक ने तुरन्त अपनी भूल स्वीकार करके आत्म शुद्धि की । यह भी भगवान द्वारा भूल देखने - बताने और उसे महाशतक द्वारा तुरन्त मानकर सुधारने का अनूठा उदाहरण है। १. देखें - उपासकदशांगसूत्र में आनन्द श्रमणोपासक का अध्ययन प्रथम २. देखें - उपासकदशांगसूत्र में महाशतक श्रावक का अध्ययन अष्टम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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