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________________ कर्म-विज्ञान : भाग ७ विषय-सूची क्या ? कहाँ? ११७ १४८ १६७ १९९ १. अप्रमाद-संवर का सक्रिय आधार और आचार २. अकषाय-संवर : एक सम्प्रेरक चिन्तन ३. कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध ४. कामवृत्ति से विरति की मीमांसा ५. योग का मार्ग : अयोग-संवर की मंजिल ६. वचन-संवर की सक्रिय साधना ७. योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण ८. निर्जरा : अनेक रूप और स्वरूप ९. निर्जरा के विविध स्रोत १०. सकामनिर्जरा का एक प्रबल कारण : सम्यक्तप ११. प्रायश्चित्त : आत्म-शुद्धि का सर्वोत्तम उपाय १२. निर्जरा, मोक्ष या पुण्य-प्रकर्ष के उपाय : विनय और वैयावृत्यतप १३. स्वाध्याय और ध्यान द्वारा कर्मों से शीघ्र मुक्ति १४. व्युत्सर्गतप : देहातीत भाव का सोपान १५. भेदविज्ञान की विराट् साधना १६. शीघ्र मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय : अविपाक निर्जरा २३५ २६२ ३०५ ३४४ ३७७ ४१८ ४४८ ४७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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