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________________ * पहले कौन ? संवर या निर्जरा ७९ गुत्थमगुत्था हो जाता अथवा अपने हाथ में पकड़ी हुई लाठी से उस पर दे मारता । किन्तु वह साधु संवर-निर्जरारूपं शुद्ध धर्म को जीवन में पचाये हुए था। उसने कहा -“हाँ, भाई ! तुम कहते हो, वह सत्य है ।" उसके पश्चात् गाँव में प्रवेश करते समय धर्म-प्रेमी भाई-बहन उनका स्वागत करने आये और "महात्मा पुरुषों की जय ! अमुक साधु की जय हो, आप क्षमाशील हैं, दया के अवतार हैं, छह काया के प्रतिपाल हैं, आपका तप, संयम उत्कृष्ट है।” इस प्रकार प्रशंसा करने लगे। तब उक्त संत ने कहा- "तुम लोग कहते हो, यह भी सत्य है ।" निन्दा और प्रशंसा दोनों ही परिस्थितियों में उन्होंने मन-वचन-काया पर संयम रखा, संवर को ही सर्वप्रथम अपनाकर क्रोध और अहंकार से आते हुए कर्मास्रव को एकदम रोक दिया। यह देखकर उस निन्दक व्यक्ति को बड़ा आश्चर्य हुआ महात्मा जी के इस अनोखे व्यवहार पर। सबके चले जाने के बाद उसने एकान्त में उक्त महान् संत से पूछा“मैंने आपको गालियाँ दीं, तब आपने कहा- तुम्हारा कहना सत्य है और आगन्तुक भक्तों ने आपकी प्रशंसा की, तब भी आपने कहा- तुम्हारा कथन भी सत्य है । दोनों बातें सत्य कैसे हो सकती हैं? इसका रहस्य मुझे समझाइए | " सन्त ने कहा - " --"तुमने जो कहा, वह सत्य इसलिए है कि मैं अभी तक छद्मस्थ, अल्पज्ञ हूँ, वीतरागी सर्वज्ञ नहीं बना, तब तक मैं उनके गुणस्थान से बहुत नीचा हूँ, मेरे अन्दर अभी चारित्रमोह का उदय है, इसलिए यथाख्यातचारित्र से हीन हूँ, कषायाविष्ट हूँ, चारित्रमोह के कारण मूढ़ भी हूँ। अभी मैं तीर्थंकरों के समान परमार्थी नहीं बना, इसलिए स्वार्थी भी हूँ और मुझे अभी तक केवलज्ञान नहीं हुआ, इसलिए विवेकहीन - ज्ञानहीन भी हूँ और संयम - यात्रा के लिए पेट भरना पड़ता है, इसलिए उदरम्भरी भी हूँ। भक्तों ने मेरी प्रशंसा की, उसे मैं अपनी प्रशंसा नहीं मानता; क्षमा, दया, तप, संयम, करुणा आदि साधुता की एवं साधु जीवन के गुणों की प्रशंसा है। मैं अपने अन्दर उन गुणों को पूर्णतया लाने के लिए आत्म-भावरमणरूप निर्जरा की साधना कर रहा हूँ। अहंकारादि से ग्रस्त हो जाऊँ तो मेरे अन्दर पूर्वबद्ध कर्मों के कारण जो अहंकार, काम-क्रोधादि दुर्गुण हैं, उन्हें इन गुणों की साधना के बिना कैसे निकाल सकूँगा ?" निष्कर्ष यह है कि कर्ममुक्ति के यात्री को सर्वप्रथम संवर और उसके पश्चात् लगे हाथों निर्जरा का पद-पद पर अभ्यास करना आवश्यक है। आँधी के समय पहले द्वार और खिड़कियाँ बंद की जाती हैं बाहर जोर की आँधी चल रही है। किसी को अपना कमरा साफ करना है तो सबसे पहले उसे दरवाजे और खिड़कियाँ बंद करनी पड़ेंगी। इसके विपरीत यदि वह दरवाजे और खिड़कियाँ ऐसे समय में खुली रखकर सफाई करने लगेगा तो
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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