________________
ॐ ५८ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
आम्रव और संवर : समस्याओं तथा उनके समाधान का मूल स्रोत
कर्मविज्ञान के वीतराग सर्वज्ञ आप्त पुरस्कर्ताओं ने समस्या के मूल स्रोत की ओर सबका ध्यान खींचते हुए कहा-“समस्याओं का मूल स्रोत आस्रव है और इनके समाधान का मूल स्रोत है-संवर।" संसार की सभी समस्याओं का मूल स्रोत आस्रव और उनके समाधान का मूल स्रोत संवर इसलिए है कि आनव जन्म-जरा-मृत्यु-व्याधि आदि दुःखरूप संसार का मूल हेतु है और वह पाँच संतानों वाला है, जिनसे ये सब समस्याएँ पैदा होती हैं। इसके विपरीत जन्म-मरणादि संसार का निरोध-संवर से होता है, जो इन पंचविध आस्रवों से पैदा हुई समस्याओं का पंचविध-संवर के रूप में समाधान का स्रोत है। समस्याएँ पैदा करने से या होने से कर्मों का आस्रव और बन्ध होता है, जो भवभ्रमण का कारण बनता है। इसीलिए आचार्य हेमचन्द्र ने कहा
“आम्रवो भवहेतुः स्यात्, संवरो मोक्ष-कारणम्।
इतीयमार्हती दृष्टिरन्यदस्याः प्रपञ्चनम्॥" इसका भावार्थ यह है कि आनव जन्म-मरणादिरूप संसार का हेतु होने से वह संसार की समस्त समस्याओं का उत्पादक है। जबकि संवर इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने का अचूक साधन है। यही वीतराग प्ररूपित आर्हती दृष्टि है। शेष सब इसी का विस्तार है।
निष्कर्ष यह है कि समस्याओं का स्रोत भी तीन अक्षरों का (आम्रव) है और उनके समाधान का स्रोत (संवर) भी तीन अक्षरों का है। संक्षेप में समस्याओं का जनक आम्रव है और समाधान का जनक कर्मनिरोध का प्रेरक है-संवर। आम्रव की पाँच पुत्रियाँ
आनव की पाँच पुत्रियाँ हैं-(१) मिथ्यादृष्टि, (२) अविरति, (३) प्रमादग्रस्तता, (४) कषायवशता, और (५) योगों की चंचलता। ये पाँचों ही विभिन्न समस्याओं को जन्म देती हैं। जिनसे मनुष्य संसार में विभिन्न दुःखों से ग्रस्त रहता है।' प्रथम समस्या जननी : मिथ्यादृष्टि आम्नवसुता
समस्या की प्रथम जननी है-मिथ्यादृष्टि। संसार के अधिकांश जीवों का दृष्टिकोण मिथ्या होता है। मिथ्या दृष्टिकोण के कारण नाना समस्याएँ पैदा होती हैं। विपरीत मान्यताएँ, अज्ञान, अविद्या, देव-गुरु-धर्म-शास्त्रमूढ़ता तथा लोकमूढ़ता, हठाग्रह या पूर्वाग्रह आदि सब समस्याएँ मिथ्यादृष्टि के कारण होती हैं। दृष्टि मिथ्या
१. 'अपने घर में' से भावांश ग्रहण