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पतन और उत्थान का कारण: प्रवृत्ति और निवृत्ति
जीव अठारह पापस्थानों से भारी होते हैं
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्तानुसार जो चीज भारी होती है, वह पृथ्वी पर शीघ्र ही आ गिरती है। इसके विपरीत जो चीज हलकी होती है, वह ऊपर-ऊपर उठती जाती: है। भगवान महावीर से कर्मविज्ञान के इसी सिद्धान्तानुसार जब जीवों के गुरुत्व (भारी) और लघुत्व के विषय में पूछा गया कि जीव किन कारणों से शीघ्र ही भारी हो जाते हैं और किन कारणों से हलके होते हैं ? इसके उत्तर में उन्होंने गणधर गौतम को तथा जयन्ती श्रमणोपासिका को फरमाया - प्राणातिपात ( हिंसा) से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक जो अठारह पापस्थान बताये गए हैं, उन पापकर्मों के मनवचन-काया द्वारा आचरण करने पर जीव शीघ्र ही गुरुत्व (भारीपन ) को प्राप्त होते हैं और जब जीव इन्हीं अठारह पापस्थानों (पापकर्मबन्ध के कारणों) से विरत हो जाते हैं, इनका त्याग करते हैं, तब वे शीघ्र ही लघुत्व ( हलकेपन) को प्राप्त होते हैं।
आगे उन्होंने कहा - "इन्हीं अठारह पापस्थानों से विरत न होने वाले का संसार बढ़ता है, दीर्घ होता है और वह संसार में परिभ्रमण करता है। इसके विपरीत इनसे निवृत्त होने वाले का संसार घटता है, संक्षिप्त होता है और ऐसा जीव संसार-समुद्र के पार पहुँच जाता है । '
१. (क) कहं णं भंते ! जीवा गुरुयत्तं हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! पाणातिवातेणं, मुसावादेणं, अदिण्णा, मेहुण-परिग्गह-कोह -माण - माया - लोभ - पेज्ज- दोस- कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्नरति - अरति-पर-परिवाय- मायामोस - मिच्छादंसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा ! जीवा गुरुयत्तं हव्वमागच्छंति ।
कहं णं भंते ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! पाणातिवातवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणवेरमणेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति । एवं आकुलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति एवं दीहीकरेंति एवं हस्सीकरेंति एवं अणुपरियट्टंति एवं वीतीवयंति । पसत्था चत्तारि अप्पसत्था चत्तारि ।
- भगवतीसूत्र, श. १, उ. ९, सू. १-३