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५०४ कर्मविज्ञान : भाग ६
बाद एक दिन चुपचाप आकर पापबुद्धि गड़ा हुआ सब धन निकालकर ले गया। कुछ दिन बाद उसने धर्मबुद्धि से कहा - " चलो भाई ! वहाँ से धन निकाल लावें ।” दोनों मिलकर निशान वाले पेड़ के पास पहुँचे । गड्ढा खोदा तो धन गायब । यह . देख धर्मबुद्धि हक्काबक्का रह गया । यहाँ तक तो पापबुद्धि ने मायावृत्ति की । अब वह मृषावाद पर उतर आया। उसने निर्दोष धर्मबुद्धि को फटकारा - " चोर कहीं के ! मालूम होता है, तू ही गड़ा हुआ धन निकालकर ले गया ! तूने ही सारा धन चुराया है !" बेचारा धर्मबुद्धि किंकर्तव्यमूढ़ हो गया । पापबुद्धि ने राजदरबार में जाकर धर्मबुद्धि द्वारा धन चुराने की शिकायत की। राजा ने पूछा - " तुमने जहाँ. धन गाड़ा था क्या वहाँ का कोई साक्षी है ? धर्मबुद्धि ने ही वह धन लिया है, इस बात का कोई प्रमाण है ?” माया - मृषावादी पापबुद्धि ने कहा - "हाँ, हुजूर ! मेरे पास साक्षी और प्रमाण दोनों हैं।” राजा ने कहा - "अच्छा, कल सुबह जंगल में चलकर देखेंगे, फिर न्याय देंगे ।" पापबुद्धि तुरन्त घर जाकर अपने वृद्ध पिता से बोला - " आप अभी रात को ही जंगल में चले जाइए और निशानी वाले वृक्ष में जो खोखला है, उसमें घुसकर बैठ जाना। कल सुबह जब राजा के साथ सब लोग आएँ. और पूछें तब आप विचित्र - सी आवाज निकालकर कहना -“हाँ, दोनों ने मिलकर धन यहाँ गाड़ा था, किन्तु धर्मबुद्धि परसों उसे खोदकर धन निकालकर ले गया है।” सुबह राजा, मंत्रिवर्ग और नगरजन वहाँ आए । राजा के पूछने पर वृक्ष के. खोखले में छिपे हुए पापबुद्धि के वृद्ध पिता ने जैसा उसके मृषावादी पुत्र ने सिखाया था, वैसा ही बोला । यह सुनकर पापबुद्धि हर्षावेश में नाचने लगा और धर्मबुद्धि के सिर पर जूते मारने लगा। राजा तथा अन्य सब लोगों को इस पर शंका हुई। उन्होंने पापबुद्धि को पकड़कर कहा - " ठहरो, अभी न्याय का कार्य पूरा नहीं हुआ है। यदि इसमें वनदेव ही बोल रहा है, तो इस वृक्ष के खोखले में घास-तेल डालकर आग लगा दो ।" जब आग की लपटें उठने लगीं तो अन्दर बैठा बूढ़ा चिल्लाया- "बचाओ - बचाओ" और स्वयं कूदकर खोखले से बाहर निकल आया। सब लोगों ने पहचाना - " अरे ! यह तो पापबुद्धि का ही बूढ़ा बाप है । इसी ने यह मायाजाल रचा है। पकड़ो इसे । ” लोगों ने पापबुद्धि को पकड़कर उसकी अच्छी पूजा की और धर्मबुद्धि को सारा धन दिलाया । '
पापबुद्धि के मन, वचन और तन में माया - मृषावाद का पाप भरा था, वह प्रकट हो गया। मनुष्य अपने पाप को छिपाने के लिए उस पर मधुर वचन, कपटयुक्त व्यवहार का पर्दा डालता है, किन्तु आखिर तो पाप का पर्दाफाश हुए बिना नहीं रहता। माया-मृषावादी पाप का घड़ा फूटने पर यहाँ तो अपने पापकर्म
१. 'उपदेश - सप्ततिका' से संक्षिप्त भाव ग्रहण