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________________ ॐ धर्म और कर्म : दो विरोधी दिशाएँ * २९ ॐ जीवन में सुख-शान्ति, मानवता, स्वार्थ-त्याग, संतोष, आत्मौपम्यभाव, मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ आदि भावनाओं को जीवन में उतारने के लिए धर्म का उपयोग नहीं करते। जीवन में उठने वाली विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए तप, त्याग, संयम आदि के रूप में धर्म का पालन नहीं करते। ये भय और प्रलोभन के आधार पर धर्म करने वाले धर्म के उपासनात्मक रूप को पकड़ने वाले वर्तमान युग के अधिकांश लोग भय और प्रलोभन से, स्वार्थ, अर्थ और काम के लाभ से प्रेरित होकर धर्म करते हैं। किसी को नरक का भय है, समाज में बदनामी का भय है, सरकार के द्वारा दण्ड मिलने का भय है अथवा किसी को स्वर्ग का लोभ है अथवा स्वार्थसिद्धि का या धनादि की उपलब्धि का लोभ है, इसलिए धर्म करता है। भय और प्रलोभन की बात मन से निकाल दें और धर्म की कसौटी अहिंसा, संयम, तप, त्याग को मान लें, तभी वास्तविक धर्म जीवन में परिवर्तन ला सकता है। केवल कुछ क्रियाकाण्ड करके धर्मात्मा मान लेने और जीवन में कुछ भी परिवर्तन न करने वाले लोगों को देखकर आज का युवक धर्म से विमुख होता जा रहा है। धर्म-पालन के प्रति कुतर्क और यथार्थ समाधान . आज धर्म के प्रति अनास्था प्रगट करने वाले वर्तमान दृष्टिपरक कतिपय व्यक्ति यह तर्क करते हैं-एक व्यक्ति धर्म करता है और दुःख भोगता है; दूसरा धर्म नहीं करता, फिर भी सुख भोगता है। फिर धर्म करने से क्या फायदा? यद्यपि धर्म करने वाला और न करने वाला दोनों ही सुख और दुःख दोनों भोगते हैं, फिर दोनों में क्या अन्तर रहा? .. . धार्मिक के समक्ष दो ही तथ्य, अधार्मिक के समक्ष तीन तथ्य आजकल के वर्तमान दृष्टि-परायण लोग जीवन की अधिकांश उपलब्धियों की कसौटी सुख और दुःख को मानकर अच्छे और बुरे जीवन की मीमांसा करते हैं। सद्व्यवहार और असद्व्यवहार या सदाचार-असदाचार की समीक्षा वे इन्हीं दो बातों के आधार पर करते हैं। इन दोनों से हटकर तीसरे तथ्य पर उनकी दृष्टि नहीं जाती। . ऐसे लोगों के तर्क को सुनकर हजारों धार्मिक उलझन में पड़ जाते हैं और कभी-कभी आस्तिक व्यक्ति भी नास्तिक बन जाते हैं। किन्तु धर्माराधना करने वाले व्यक्ति में इन दो के अतिरिक्त कोई तीसरा तत्त्व काम नहीं करता, जो धर्म न करने
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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