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* ४४२ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
प्रत्याख्यान के विविध रूप
त्यागने योग्य वस्तुएँ सामान्यतया दो प्रकार की होती हैं-द्रव्यतः और भावतः। द्रव्य से त्याज्य-अन्न, वस्त्र, भवन, धन आदि। भाव से त्याज्य-मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग आदि। अथवा अष्टादश पापस्थान या हिंसादि पंच आसव। ‘अनुयोगद्वारसूत्र' में प्रत्याख्यान का दूसरा नाम गुणधारण भी बताया गया है।
द्रव्य प्रत्याख्यान के 'भगवतीसूत्र' में १० भेद बताए हैं?-(१) अनागत, (२) अतिक्रान्त, (३) कोटिसहित, (४) नियंत्रित, (५) सागार, (६) निरागार, (७) परिमाणकृत, (८) निरवशेष, (९) सांकेतिक, और (१०) अद्धाप्रत्याख्यान।२ 'भगवतीसूत्र' में प्रत्याख्यान के दो प्रकार बताए हैं-मूलगुण प्रत्याख्यान और उत्तरगुण प्रत्याख्यान। मूलगुण प्रत्याख्यान के साधु और श्रावक की अपेक्षा से दो भेद किये-सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान-पंचमहाव्रत और देशमूलगुण प्रत्याख्यान-पाँच अणुव्रत। उत्तरगुण प्रत्याख्यान के भी दो भेद साधु-श्रावक की दृष्टि से किये गए हैं। श्रावक के लिए देशउत्तरगण प्रत्याख्यान हैं-तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत, १४ नियमों की मर्यादा आदि। साधु के लिए उत्तरगुण प्रत्याख्यान–पाँच समिति, तीन गुप्ति, समाचारी, कल्प, नियम, मर्यादा आदि। सर्वउत्तरगुण प्रत्याख्यान के उपर्युक्त अनागत आदि १० भेद हैं, जो साधु-श्रावक सभी के लिए हैं। अध्यात्म-साधना के लिए नवविध प्रत्याख्यान
इनके अतिरिक्त अध्यात्म-साधना की दृष्टि से-ज्ञान-दर्शन-चारित्र के माध्यम से आत्मा की उत्तरोत्तर शुद्धि के लिए 'उत्तराध्ययनसूत्र' में ९ प्रकार के उत्कृष्ट प्रत्याख्यानों का तथा उनसे होने वाले संवर-निर्जरा की, कषायमुक्ति और कर्ममुक्ति की उपलब्धि का स्पष्ट निरूपण है। वे क्रमशः इस प्रकार हैं-(१) संभोग प्रत्याख्यान, (२) उपधि प्रत्याख्यान, (३) आहार प्रत्याख्यान, (४) कषाय प्रत्याख्यान, (५) योग (मन-वचन-काय-प्रवृत्ति) प्रत्याख्यान, (६) शरीर प्रत्याख्यान, (७) सहाय प्रत्याख्यान, ,
१. अणागय मइक्वंतं कोडिसहियं निंदियं चेव।
सागारमणागारं परिमाण कडं निरवसेसं॥ संकेयं चेव अद्धाण-पच्चक्खाणं भवे दसहा।।
-भगवतीसूत्र ७/२ २. देखें-भगवतीसूत्र ७/२ तथा स्थानांग वृत्ति स्था. २0 की वृत्ति में प्रत्याख्यान के १० भेद
और उनकी व्याख्या ३. देखें-भगवतीसूत्र एवं आवश्यकसूत्र में प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेदों का विवरण