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* सम्यक्त्व-संवर का माहात्म्य और सक्रिय आधार * ४११ ॐ
अनायतन,.(४) शंका, कांक्षा आदि ८ दोष (मल)। इन २५ दोषों के रहते सम्यग्दर्शन शुद्ध नहीं रह सकता।" तीन मूढ़ताएँ ये हैं-देवमूढ़ता, (गुरुमूढ़ता या) शास्त्रमूढ़ता एवं लोकमूढ़ता। आठ मद ये हैं-जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, लाभमद, श्रुत (ज्ञान) मद एवं ऐश्वर्य (प्रभुत्व अधिकार) मद। छह अनायतन ये हैं-(१) मिथ्यादर्शन, (२) मिथ्याज्ञान, (३) मिथ्याचारित्र, (४) मिथ्यादृष्टि, (५) मिथ्याज्ञानी, और (६) मिथ्याचारित्री, इनका सेवन (सम्पर्क) करना। ___ शंकादि आठ दोष ये हैं-(१) शंका, (२) कांक्षा, (३) विचिकित्सा, (४) मूढ़दृष्टित्व, (५) अनुपबृंहण या अनुपगूहन, (६) अस्थिरीकरण, (७) अवात्सल्य, और (८) अप्रभावना।
सम्यक्त्व-संवर के साधक को इन २५ दोषों का त्याग करना अत्यन्त आवश्यक है।
- सम्यक्त्व की विशुद्धि और सुरक्षा के लिए ६७ बोल श्वेताम्बर परम्परा में सम्यक्त्व की विशुद्धि एवं सुरक्षा के लिए परमार्थदर्शी आचार्यों ने ६७ बोल बताये हैं, उन्हें भलीभाँति जान-समझकर, उनमें से जो पालन (आचरण) करने योग्य हों, उनका पालन करना और जो परिहार (त्याग) करने योग्य हों, उनका परिहार (त्याग) करना चाहिए। सम्यक्त्व शुद्धि के परम निमित्त वे ६७ बोल इस प्रकार हैं. (१) चार प्रकार की श्रद्धा, (२) तीन लिंग, (३) दस प्रकार का विनय, (४) तीन प्रकार की शुद्धि, (५) पाँच दूषण (अतिचार), (६) आठ प्रकार की सम्यक्त्व प्रभावना, (७) पाँच भूषण, (८) पाँच लक्षण, (९) छह प्रकार की यतना, (१०) छह आगोर, (११) छह भावनाएँ, और (१२) षट्-स्थानका क्रमशः विवेचन इस प्रकार है१. (क) दंसणं सम्मइंसणं तस्स विसुद्धदा.- तिमूढावोढ-अट्ठमल-वदिरित्त-सम्मइंसणभावो दसणविसुद्धदा नाम।
__ -धवला ७/७९-८० (ख) निज-शुद्धात्मरुचिरूपनिश्चयसम्यक्त्व-साधकेन मूढत्रयादि-पंचविंशति-मल-रहितेन - तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणेन दर्शनेन शुद्धा दर्शन शुद्धाः पुरुषाः। ।
-प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति ८२/१0४/१८ (ग) मूढवयं मदश्चाष्टौ तथाऽनायतनानि षट्। - अष्टौ शंकादयश्चेति दृग्दोषाः पंचविंशतिः॥
-ज्ञानसार, त. ता. श्रावका. (घ) इन सबकी व्याख्या आगे पढ़ें। २. तस्स विसुद्धि-निमित्तं, नाऊण सत्त-सट्ठि ठाणाइं। पालिज्ज-परिहरिज्जं च जहारिहं, इत्थ गाहाओ।
-सम्यक्त्वसित्तरी, पृ. १३८, धर्मसंग्रह, अ. १, गुण १३