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ॐ सम्यक्त्व-संवर का माहात्म्य और सक्रिय आधार ® ४०९ 8
देव-गुरु-धर्म की आराधना करना), (१८) कुप्रावचनिक मिथ्यात्व (अनेकान्तनिरपेक्ष मिथ्या दर्शनों की मान्यताओं, मतों या विचारधाराओं का स्वीकार), (१९) न्यून मिथ्यात्व (पूर्ण सत्य को या तत्त्व-स्वरूपों को आंशिक सत्य समझना या न्यून मानना), (२०) अधिक मिथ्यात्व (आंशिक सत्य को उससे अधिक या पूर्ण सत्य मानना), (२१) विपरीत मिथ्यात्व (वस्तुतत्त्व को उसके विपरीत रूप में मानना), (२२) अक्रिया मिथ्यात्व (आत्मा को एकान्तरूप से क्रियारहित मानना या सिर्फ ज्ञान को महत्त्व देकर क्रिया की उपेक्षा करना), (२३) अज्ञान मिथ्यात्व (एकान्तरूप से अज्ञानवाद को ही महत्त्व देना, अज्ञानग्रस्त रहना अथवा ज्ञान या विवेक की उपेक्षा करना), (२४) अविनय-मिथ्यात्व (श्रद्धेय देव, गुरु, धर्म एवं शास्त्र तथा तत्त्वों के प्रति विनय, भक्ति, बहुमान या आदर न करना, उनकी आज्ञाओं का पालन न करना), और (२५) आशातना मिथ्यात्व (पूज्यवर्ग की निन्दा, आलोचना, बदनामी या अवज्ञा करना)। सम्यक्त्व-संवर की साधना के लिए इन २५ मिथ्यात्वों से बचना बहुत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त मिथ्यात्व में प्रवृत्त होने के अन्तरंग और बहिरंग दो कारण माने गये हैं, जो सम्यक्त्व-घातक हैं, इनसे भी बचना जरूरी है। मिथ्यात्व का अन्तरंग कारण-अनन्तानुबन्धी चार कषाय एवं दर्शनमोहनीय की तीन, यों सात कर्मप्रकृतियों के बन्ध का उदय और बहिरंग है-- पूर्वोक्त मिथ्यात्व के दस भेद। इन ७ प्रकृतियों के बन्ध से सम्यक्त्व-संवर-साधक को दृढ़तापूर्वक बचना चाहिए। एक जैनाचार्य ने मिथ्यात्व के अनर्जित (नैसर्गिक) और अर्जित (मिथ्या धारणा वालों के उपदेश से स्वीकृत) यों दो भेद किये हैं। अनर्जित मिथ्यात्व मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के उदय से होता है। परन्तु अर्जित (परोपदेशपूर्वक) मिथ्यात्व के मुख्य ४ भेद हैं-क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद। ये चारों एकान्तरूप से अपने-अपने वाद को ही सत्य मानते हैं, दूसरे को नहीं, इसलिए मिथ्या हैं। सूत्रकृतांग' में इनके क्रमशः १८0, ८४, ३२ और ६७ भेद बताये गये हैं। इन चारों वादों के एकान्त से सम्यक्त्व-संवर-साधक को बचने का प्रयत्न करना चाहिए।
सम्यग्दर्शन की विशुद्धि संवर का मूल कारण सम्यग्दर्शन की विशुद्धि को 'ज्ञाताधर्मकथा' तथा 'तत्त्वार्थसूत्र' में तीर्थंकर नामकर्म के उपार्जन का आद्य एवं प्रमुख गुण बताया गया है। भगवती आराधना' १. (क) 'सम्यग्दर्शन : एक अनुशीलन' (अशोक मुनि) से भावांश ग्रहण (ख) देखें-अर्जित मिथ्यात्व (औपदेशिक) के क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयकारी और
अज्ञानवादी के भेद-प्रभेदों की व्याख्या सूत्रकृतांग, नन्दीसूत्र आदि आगमों में। २. ज्ञाताधर्मकथा, अ. ८, सू. ६४