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8 सम्यक्त्व-संवर का माहात्म्य और सक्रिय आधार ॐ ३८५ ॐ
इसी तरह युगादि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की आत्मा ने धन्य सार्थवाह के भव में धर्मघोष आचार्य का धर्मोपदेश श्रवण करके सर्वप्रथम सम्यक्त्व प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उन्होंने संसार-यात्रा करते हुए १३वें भव में तीर्थंकर ऋषभदेव बनकर सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष' प्राप्त किया। इस पर से यह स्पष्ट होता है कि सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष के अभिलाषी जीव के लिए सम्यक्त्व को प्राप्त करना कितना महत्त्वपूर्ण है, कितना उपयोगी है? इहलौकिक और पारलौकिक जीवन को भी सुख-शान्ति-सम्पन्न बनाने के लिए भी सम्यक्त्व-प्राप्ति की कितनी उपयोगिता और अनिवार्यता है?
सम्यक्त्व के बिना व्रतनियमादि मोक्ष के कारण नहीं अतः सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष के सम्बन्ध में विचार करने अथवा संवर-निर्जरा रूप धर्म के सम्बन्ध में विचार करने से पूर्व सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व के सम्बन्ध में विचार करना आवश्यक होता है। क्योंकि सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन के बिना कोई भी व्रत, नियम, तप, सामायिक, संवर, त्याग, प्रत्याख्यान आदि तथा असम्यग्ज्ञान, चारित्र आदि मोक्ष-प्राप्ति के कारण नहीं बन सकते। मिथ्यात्वी की कोई भी धर्मक्रिया मोक्षमार्ग का कारण नहीं बन सकती।
अतः तप और त्याग का, व्रतों का, नियमों का मूल सम्यग्दर्शन है। अध्यात्मसाधना का मूल केन्द्र भी सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व के अभाव में चाहे उच्च से उच्च कष्ट-सहन की प्रक्रिया हो, वह संसारमार्ग का ही परिपोषण करने वाली होगी।
___ सम्यक्त्व मोक्ष का द्वार इसीलिए सम्यक्त्व को मोक्ष की नींव, मूलाधार, प्रतिष्ठान, मोक्ष का प्रथम द्वार, प्रथम सोपान एवं मोक्ष का प्रमुख पात्र एवं निधि बतलाया गया है। जैसे-अंक के बिना हजारों शून्यों का कोई मूल्य नहीं होता, उसी प्रकार सम्यक्त्वरूप अंक के बिना हजारों त्याग, व्रत, नियमों, प्रत्याख्यानों का मोक्ष (कर्मक्षय) की दृष्टि से कोई
१. देखें-कल्पसूत्र (सम्पादक-पं. मुनि श्री नेमिचन्द्र जी म.) के द्वितीय खण्ड में इन तीर्थंकरों के
भवों का वर्णन २. (क) दर्शनेन विना ज्ञानमज्ञानं कथ्यते बुधैः।
चारित्रं च कुचारित्रं व्रतं पुंसां निरर्थकम्॥४४॥ अधिष्ठानं भवेन्मूलं, हादीनां यथा तथा।।
तपो-ज्ञान-व्रतादीनां दर्शनं कथ्यते बुधैः॥४५॥ -प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, श्लो. ४४-४५ (ख) सम्यक्त्वमेवामुच्यते सारं सर्वेसां धर्म-कर्मणाम्। -अध्यात्मसार प्रबन्ध ४/१२/३४