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________________ * विविध दुःखों के साथ मैत्री आत्म-मैत्री है ® ३३३ ॐ - आस्था के साथ भावना से रोग के साथ मैत्री स्थापित होती है आस्था के साथ भावना का तार भी जुड़ा हुआ होना चाहिए। भावना के प्रभाव से रसायन भी बदल जाते हैं। तपस्वी और संयमी संतों के वचन से भी रोग मिट जाते हैं, उनके चरणों की धूल से भी रोग और दुःख मिट जाते हैं। कहते हैं-परम प्रतापी पूज्य आचार्य श्री हुक्मीचन्द जी महाराज के चरणों की धूल शरीर पर लगाने से एक भाई का कुष्ट रोग मिट गया था। मेरे दादागुरु श्री ज्येष्ठमल जी महाराज की चरण-रज लगाने से अंधा व्यक्ति भी देखने लग गया था। यह सब भावनाओं का चमत्कार है। शुभ भावना से आस्थापूर्वक आत्म-संकेत से भी टी. बी. जैसे भयंकर रोग मिट जाते हैं। गुजरात के प्रसिद्ध संत पुनीत को आस्थापूर्वक भगवन्नाम-स्मरण से टी. बी. रोग समाप्त हो गया था। प्रभु नाम के अनन्य आस्थापूर्वक स्मरण से रोग के प्रति ध्यान हट जाता है। फलतः रोग स्वतः ही भाग जाता है। संकल्प-बल भी रोग के साथ मैत्री का अद्भुत उपाय संकल्प-बल भी रोग के साथ मैत्री करने का अद्भुत उपाय है। अनाथी ने असह्य चक्षु-पीड़ा के निवारण के सभी उपाय आजमा लिये। जब किसी भी प्रकार से चक्षु रोग समाप्त नहीं हुआ तो उन्होंने सोचा-मैंने अब तक रोग-निवारण के लिए आत्म-बाह्य पर-पदार्थों का आश्रय लिया, मुझे आत्मा के गुणों-क्षमा, दमन, कषायोपशमन, निरारम्भता (अहिंसा) आदि का अवलम्बन लेना चाहिए। आत्मा के द्वारा कृत कर्मों के इस दण्ड को समभाव से भोगने पर ही यह कर्मरोगजनित पीड़ा जाएगी। अतः उन्होंने दृढ़ विश्वास के साथ संकल्प किया कि “यदि मैं पीड़ा से मुक्त हो जाऊँ तो क्षान्त, दांत होकर एकमात्र आत्मा की अनन्य शरण लेकर साधना करूँगा।" जब दृढ़ संकल्प के द्वारा उन्होंने रोग के साथ मैत्री स्थापित की तो प्रातः होते ही पीड़ा बिलकुल शान्त हो गई। वे अनाथी मुनि बनकर आत्म-मैत्री में निमग्न हो गए। कष्ट-सहिष्णुता भी रोग के साथ मैत्री करने का अचूक उपाय - सहन-शक्ति तो रोग के साथ मैत्री स्थापित करने का अचूक उपाय है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण सनत्कुमार मुनि का मिलता है। सौन्दर्य के प्रति गर्व से, रूपासक्ति से अशुभ कर्मोदय के फलस्वरूप उनके शरीर में सोलह ही भयंकर समझे जाने वाले कुष्ट रोग आदि फूट निकले। सनत्कुमार विरक्त होकर चक्रवर्ती से मुनि बन १. 'दो आँसू' (उपाध्याय केवल मुनि) से सार संक्षेप, पृ. ३६-३७ २. देखें-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २0 में अनाथी मुनि का वृत्तान्त
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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